इश्वर देवताओ के सम्वाद | Ishvar Devtao Ka Sanwad

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Ishvar Devtao Ka Sanwad by स्वामी गुजर सिंह जी - Swami Gujar Singh Ji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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इंदवर का जीवरुपसे देह में प्रवेश । अथ-तिम नारायण से हीं स्थुल समष्ठि | पिराटरूप जाये सो सर्वच्यप्त स्वृूछ का मूलकारण विगरसखरूप दोता भया ॥ २३ ॥ ० श स॒ चानन्तशापापुरुष अनन्ताक्ष पाणिपादों भवति । अनन्त श्रवण सवमावृत्यात्वत ॥ २४ ॥ त्रिपा० अ० रे अर्थ-सो परमात्मादेव अनन्त शिरोबाछा होता मया, तथा सो परमात्मा पुरुष अनन्त अधिवाल्य होता भया, त्तथा सो नारायण अनन्त हाथ पांद वाला होता मथा, तथा सो परमात्मांदेव अनन्त श्रोत्राष्म होकर सर्वे को च्याएँ करके स्थित दे ॥ २४ ॥ श रे श ७९ सवेब्यापकोा भवांते सम्रुणानग्रुण पड कप हू सखरूपों भवति। ज्ञानवलेशर्यशक्तितेजा स्वरुपो भवाति ॥२५॥ सो परमास्माठेव सवेब्यापफ होता भया तथासो नागयण समुण निर्गुणरूप होता मया । तथा सज्ञता ज्ञानरूप बछ यारा होता भया तथा ऐड्दर्य रूप से शक्ति तथा तेन रूप होता भया ॥२ ०॥ विविवविचित्रानन्त जगदकारो भवाति । निरतिशयानन्द मयानस्त- प्रमावैश्ञति समह्याविश्वाकासे भवति [र६॥ त्रिपा० अ० ३ अग्रे--नाना प्रकार और तिचित्र अनन्त प्रगाग के लगदाइार डरे प्राप्त होगा भया और निरनिक्षप भानस्द्मय अनन्त परमममष्टे | दिझ्ठानि तथा प्रतिविम्पाझार को भराप्त मया ॥२छ।ा निरतिशयंनिरंकुश सर्वज्ञ सवेशक्ति सर्वनियंतृबायनंतकल्याण गुणाकांगे भव॒ति। वाचामगोवरानन्त दिव्यतेजो- राश्याकारो भवाति ॥ २७)! त्रिपक्विर अध्यायर अर्थ-निरतिश्षय निरंकुश सर्यज्ञसवैजक्ति सवेका नियन्तारूप तथा अनन्त कल्याणरूप गुणवाला होता भया, और यनब्राणी का अविषय अनन्त टिव्यते भोंका राशीरूप होता मया ॥ २७॥ समस्ताविधयाण्डव्यापकी भवति ! सचानन्त महामाया विलासा नाम पिछानविशेष निरतिशयाद्वेत, परमान- न्दलक्षण परत्रह्मविल्ास विग्रहों भवति ॥ २८ ॥ त्रिपाद्वि० अ० २ ॥ अर्थ-समत्त॒ अविधारचित ब्माण्दपें व्यापकरूपमे स्थित होता भया सो । नारायण अनस्त महापायाक्ना क्ार्यनपक्षका अधिप्वानरूपमे तथा स्थित होतामया। विशेष करके निरतिशय अद्वित परमानन्द लक्ष णयुक्त पर ब्रह्मका विज्ञासरूप ब्रिग्रह होता भया ॥ २८ ॥ आज, $ ३ रे अस्येकेक रोमकृपां तरेष्वनन्तकोटि- बल्माण्डानस्थावराणे च जायन्त । तेष्वण्डेप सर्वेष्ेकेक नारायणावतारो जायते ॥२९॥ त्रिपद्धि०्अ० २॥ अपेन-दस सर्वे के अधिप्ठान नारायण के एक एक गाव कृपांतर में अनन्त कोटि अक्माण्ठों की उत्पत्ति होती भई तथा स्थायर लजेगय चारों खसाणी होते भये | दिन सर्य ब्रद्माण्डों जिपे एक एक वक्षण्ड में नाशयण पे; राम क्रृप्णादिक




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