ऋग्वेद संहिता | Rigveda Samhita

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Rigveda Samhita  by शंकरदत्त शास्त्री - Shankaradatt Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ३९९९ ) कऋण्मंन्शशू०१२० चह०सं०१ सू० १२० । अश्विनोदेवत्ते, ओशिजोदे्घधतमसः कक्षीवानविः । विनियोगः- १--९ | आदितो नयर्वों घर्म्म्रामिष्ट्ये विनियुक्ताः (भ(० ४६३) दशिष्ठाणां लैड्जिकः । सूक्त का भाषार्थ । हैं महियनो ! भाप को कोनसा यज्ञ खचता है ! कौन (ऐसा भाग्यशाली दै जो) भाष को प्रसन्‍न करने में तस्पर है, (मुझ जैला) भश फैले आप की सेवा करे ह ; १।मशानो इन्हीं विद्वान (भद्यनों) से (स्तुति भौर पूजा करने की त्रिधि को) पछे, इनसे दूसरा (भर्यात्‌ मनुष्य) भश हे, सचमुच मर्णधर्मी (मनुष्य) के लिये यही फोट (की न्याई भाश्रय दाता) हैं। २। पैसे चिहानों को हम चुलाते हैं, ये भाप दम फो स्तुति का मजन यतायें # भाप या भक्त दृचि देता हुमा आप यो अत्यन्त नमस्कार करता दैं। १। है तेज्नस्पी (भप्यनों )) में याऊुक की न्याई देवता्ों ले भद्भुत पपदकार से 4 किये हुए. (दो का तत्व) पूछता ह, (दे देयो ! ) आप दोनों (दम से) भधिक बल याले से दमारो रक्षा करें, प्रचण्ड (शध से दर्म घयाये ।४। दे भदियनों ! जो याणो भ्गु जले (महार्मा) # भ्ांत्‌ रतुति के भजन बनाने को दाक्ति दम को देय, जैछे मंचदच्चा फपियों को दी थी । +$ दर्श पौर्णमास आादि इप्टियें। में मंत्र पद कर सन्त में 'बौश्वट! पेसा घोल वए सरित में भाइति डाली ज्ञाती है। इसका हाम चषट्कार दे ॥




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