रामराज्य और मार्क्सवाद | Ramrajya Aur Marksvad

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Book Image : रामराज्य और मार्क्सवाद  - Ramrajya Aur Marksvad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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।. झ्ृतः स्वामी:जी के भ्रनुसार व्यक्तिगत सम्प्रत्ति उठा देने से महान झनथ होगा “ ब्यक्तिगत भूमि-सम्पत्ति श्रादि का राष्ट्रीकरण हो जाने से सभी को सदा के लिए परतन्त्रता के बन्धन में जकड़ जाना पड़ेगा । अपनी संस्कृति सभ्यता एवं घर्मं के विकास तथा रक्षण के लिए कोई कुछ भी त कर सकेगा । मुद्दीभर तानाशाह कम्युनिस्टों का निर्णय ही उनकी धर्म, सभ्यता का निर्णोय समका जायगा। मध्यम श्रेणी को यह समभाने की आवश्य- कंता नहीं है कि मजदूर लोग गरीब नहीं रहेंगे। ... जिसका शासन रहता है, वह गरीब नहीं रहता ।” (एप. ३६०-६१ ) महाराज यहां बिल्कुल नग्न हो गये हैं। उनके सम्प्रदाय में नागा भी होते हैं इसलिए यह कोई अ्रचरज की बात नहीं है ! मजदूरों का गरीब नहीं रहना उन्हें बहुत श्रखरता है। अ्रतः वह फरमाते हैं : , /ईदवर की सृष्टि उसकी व्यक्तिगत सम्पत्ति ही थी। उसी से उत्तराधिकार रूप में वह उसकी सन्‍्तानभूत विभिन्‍न प्राणियों को मिली । ... किन्तु मुख्य रूप से दाय से और फिर जय, क्रय, दान, पुर- स्कारादि रूप में ही भूमि-सम्पत्ति आदि पर व्यक्तिगत अधिकार हुए हैं । अपने-अपने कर्मों से सुख-दु:ख एवं तंत्तत्साधनों का व्यक्तिगत सम्बंध हुआ है।' (४. १७२) . “भारतीय धार्मिक राजनीतिक शास्त्रों ने व्यक्तिगत सम्पंत्तियों को वैध माना है। मन्वादि धमंशास्त्र, मिताक्षरा आदि निबन्ध-प्रन्थों में कहा गया है कि पितृ-पितामहादि की सम्पत्तियों में पुत्र-पौन्नादि का जन्मना स्वत्व है । ... दाय के रूप में प्राप्त चल, भ्रचल धन पुत्रादि का वैध धन है। इसी प्रकार निधि लाभ, मित्रों से मिली, विजय से प्रास, गाढ़े पसीने की कमाई से खरीदी हुई सम्पत्ति, पुरस्कार तथा दान में प्राप्त एवं उद्योग कृषि, व्यापारादि तथा उचित सूद आ्रादि द्वारा प्राप्त सम्पत्ति वैध सम्पत्ति समभी जाती है। सप्त वित्तागमा धर्म्या दायो लाभः क्यो जय: । । “ प्रयोगः कर्मयोगइच सत्यप्रतिग्रह एवं च ॥...”( पृ. २४८:४६ ) र्व




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