मुमुक्षुसर्वस्वसार | Mumukshusarvaswasar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
430
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रथम प्रकरण श
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नीलपृष्ठत्रिकोणरत्व यथा झुक्तेने भासते।
तथाखण्डादितीयत्वं आन्तौ नात्मन ईश््यते ॥ ४१ ॥
समाधान-ऐसा मत कहो; सुनो, इस विपयमें जो व्यवस्था
है. वह मैं तुम्हें सुनाता हूँ। जिस प्रकार [ झुक्तिमें रजत-
की श्रान्ति द्वोंनेपर ] झुक्तिकी नीली पीठ और त्रिकोणता नहों
भासती उसी प्रकार भ्रान्तिकालमें आत्माका अखण्ड अद्वितीयत्व
प्रतीत नहीं होता।
शुक्तेरेवेदमंशत्य॑ शुक्तिरुप्पे . य्थेक्ष्यते ।
तथात्मनो5पि बैतन्यमनात्मनि समीक्ष्यते ॥ ४शा।
जिस प्रकार शुक्तिके स्थानमें मासनेवालोे चॉँदोमे झुक्तिही-
का इदम-अंश्त्व# देखा जाता है उसी प्रकार अनात्मामें आत्माकी
हो चेतनता देखी जाती है |
यथा रूप्यस्स रूप्यस्वं शुक्तीदमि प्रपश्यति )
आ्रान्तो मररूथास्मापि कर्चु स्वाथात्मनीक्षते ॥ ४३ ॥
जिस प्रकार भ्राल्त पुरुष शुक्तिके इदम-अंशमे रजजतका रज-
तत्तत देखता है. उसी तरद्द आत्मा भी [ अज्ञानबश ] अपनेहीमें
करत त्व आदि धर्म देखा करता है।
# जिस समय सोपीमे चोदीकी प्रतीत होती है और यह कहा
जाता है कि 'इदं रूप्यमस्ति! (यइ चोंदी हे) तो इस याक्यमें 'इदम?
(६ यह ) पदसे चोदीकी अधिडानभूत सीपी ही छक्षित होती है। इस
प्रकार वॉदौका अष्यात शोनेपर भी शदम्-अंशसे सीपो उसमें अनुगत
रहती ही ऐ।1
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