मुमुक्षुसर्वस्वसार | Mumukshusarvaswasar

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Mumukshusarvaswasar  by मुनिलाल - Munilal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रथम प्रकरण श < दस उला ८7०६२८:० ८7०६७८२८7०४०:०२६7:४-००५८:७४:८६०७ ८७ #४::% नीलपृष्ठत्रिकोणरत्व यथा झुक्तेने भासते। तथाखण्डादितीयत्वं आन्तौ नात्मन ईश््यते ॥ ४१ ॥ समाधान-ऐसा मत कहो; सुनो, इस विपयमें जो व्यवस्था है. वह मैं तुम्हें सुनाता हूँ। जिस प्रकार [ झुक्तिमें रजत- की श्रान्ति द्वोंनेपर ] झुक्तिकी नीली पीठ और त्रिकोणता नहों भासती उसी प्रकार भ्रान्तिकालमें आत्माका अखण्ड अद्वितीयत्व प्रतीत नहीं होता। शुक्तेरेवेदमंशत्य॑ शुक्तिरुप्पे . य्थेक्ष्यते । तथात्मनो5पि बैतन्यमनात्मनि समीक्ष्यते ॥ ४शा। जिस प्रकार शुक्तिके स्थानमें मासनेवालोे चॉँदोमे झुक्तिही- का इदम-अंश्त्व# देखा जाता है उसी प्रकार अनात्मामें आत्माकी हो चेतनता देखी जाती है | यथा रूप्यस्स रूप्यस्वं शुक्तीदमि प्रपश्यति ) आ्रान्तो मररूथास्मापि कर्चु स्वाथात्मनीक्षते ॥ ४३ ॥ जिस प्रकार भ्राल्त पुरुष शुक्तिके इदम-अंशमे रजजतका रज- तत्तत देखता है. उसी तरद्द आत्मा भी [ अज्ञानबश ] अपनेहीमें करत त्व आदि धर्म देखा करता है। # जिस समय सोपीमे चोदीकी प्रतीत होती है और यह कहा जाता है कि 'इदं रूप्यमस्ति! (यइ चोंदी हे) तो इस याक्यमें 'इदम? (६ यह ) पदसे चोदीकी अधिडानभूत सीपी ही छक्षित होती है। इस प्रकार वॉदौका अष्यात शोनेपर भी शदम्‌-अंशसे सीपो उसमें अनुगत रहती ही ऐ।1




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