अथर्व वेद का सुबोध भाष्य भाग 4 | Atharva ved ka Subodh Bhashya Bhag 4
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15 MB
कुल पष्ठ :
572
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about श्रीपाद दामोदर सातवळेकर - Shripad Damodar Satwalekar
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कांण्डोंका परिचय ]
प्रतरं घेह्मेनाम्-- इन ख्रीको विशेष उच्चत कर ।
स्िया समानानाते सर्वान्त्स्थाम-- संपत्तिसे दम सब
समानेंसे विशेष हों ।
अधस्पद् द्विपतस्पाद्यामि-- द्वेप करनेवार्जोंको नीचे
मिशाहे हैं ।
मा त्वा प्रापत् छपथों मामिचारः ( १॥॥1३२ )--
तुझे शाप प्राप्त नद्दो भौर बध भी तेरे पास न भावे।
अभ्यावर्तस्त पद्ममिः सदैनाम् ( ११1१४२२ )-- इस
परनीको पशुमोंके साथ ब्राप्त द्वो ।
क्षेत्र अनमीया थि राज़-- भपने क्षेत्रमें नोरोग
होकर विराजों
असंद्री शुद्याभ्प धेद्दि नारि, तन्चोदत सादय दैवा-
नाम् ( ११।१।२३ )-- शुद्ध न हूटी थाऊीको, दे
ख्री | चूडेपर रख, उसमें देषोंकि किये लन्न पकाणो।
ते मा रिपन् प्राशितारः (१११२५ )-- झस क्ष्षको
पीनेवाछे नष्ट न हों । ( भ्रन्नम्मे दोप न दो । )
दयाशील री
अर पचामि, अद्दं ददृशमि, ममेंदु कमंन् करुणेड्थि
जाया, फौमारों छोफो अजनिष्ट पुश्नोडस्चार-
सेथां घय उतस्तरावत् ( १९३४७ )--मैं पकाता
हूं, में देता हैं, मेरी परनी दयाके कर्मेमें यरन करती
है, हमें कुमार पुत्र रतन हुणा दे। उच्च नवष्या
प्राप्त कावा हुआ उच्च जीवन ब्यतीत करे ]
हु
सब
ल् दान
द्दामीस्येष दुयाच् ( १शश॥+ )-- देवा हूं देता दी
कद्दना चाहिये 1
पापसे बचाव
के नो मुश्चस्वंद्सः ( १३४१-१३ ;-- पे हमें पापसे
थच्चादें |
मे यपपुरा चकृमा फद्ध नूनसृतं घदन्तो अच्त सपेम
( 12$10 )-- जो पदिेके डिया सही यद अब
ईसा वर, सत्य बोछनेवाले लपत्य कार्य केसे करें?
मे तिषटन्ति न मि मिपस्तयेते देयानां स्पद्ा इद ये
ब्यराम्ति ( १८१६ )-- देपोंडे पास यहाँ जो चछते
है, दे मे रदरते हें म जद बंद कहते है ( वे पापी
पदइते दी हैं । )
(५)
” प्रापभाहयः खलार॑ निमच्छात् ( १८१॥१४ )-- बहि-
नके पाप जाना पाद कद्दछाता है ।
पृत्रकामना
बह्मौदर्न पचति पतञ्रकामा (४११३॥१)-- पुत्रकी इच्छा
करनेवाली माता ज्ञान बढानेवालू। भन्न पकाती है।
अद्वोघाविता चाचमच्छ ( 4111२ )-- ब्रोह न करने-
चाह्टोंकी रक्षा करनेकी मापा बोक |
पृतनापाद् छुबीरों येत्र देवा अश्नदवन््त » शंत्रून्
(११३ )-- सेनाका पर।मव करनेबाह्ा उत्तम
वीर है, इससे देव शय्रुझनोंका परामव करते दें ।
अजनिष्ठा मद्ते वीर्याय ( १११३ )-- बडे पराक्रम
करनेझे लिये जन्म छो ।
अस्मैं रथिं सर्वचीरं नि यच्छ -- सब इत्रपौग्रोरे साथ
रहनेवाऊा घन इसको दो ।
विद्वान देवान् यज्चियां पद बक्षः ( १४१४ )-- व्
विद्वाव् पूजनीप देवोंछ्ों यद्वां छे भा।
च्युन्ज द्विपतः सपत्नाय ( १६11६ )- दे करनेवाले
सपरनोंकोी दूर कर |
सजातांसस््ते बलिहतः कूणोतु ( १११६ )-- खजाति-
योहो कर देनेवाऊे करे 1
उदुब्जैनां मदते चीर्याय ( १119० )-- मदान् पर
क्रम करनेके लिये ऊंची प्रेरणा कर ।
गच्छेम सुझृतस्य छोक (11111८ )-- पुण्यकमे करने-
वाछेके छोकको हम जाप । *
ऊध्चे प्रजामुद्धरन्व्युदृदद ( १११४६ )-- प्रमाद्या ददार
करनेके; छिये ऊपर ढठावों ॥ *
पिया समानानति सर्पान् स्पाम (१११११२ )--
घनसे हम सब सम्तानोसे झागे यढेंगे )
अधस्पदे द्विपतस्पादयामि-- शयुझो मोौचे मित
देहे हैं ।
पद्ठा पालन
मा नो इहिंसिए द्विपदो भा चमुप्पदा ( 4918१ )>-
हमारे द्विपाद, चत॒ुष्दादोंदी हिंसा न छरो |
प्राण
ब्राधाय नमो यसप सयोमिर पदों (११४३ )-- जिपरे
अपोग सब दें इस प्राघरे डिये ममरदार करता हूं।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...