श्री उपासकदशाग सूत्र संकेतिक | Shree Upasakdashaag Sutra Sanketik
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
23 MB
कुल पष्ठ :
494
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रकाशकीय वक्तव्य
प्रात सस्मरणीय जैनधर्मदिवाकर, जेनागमरत्नाकर, साहित्यरत्न जेंनाचार्य
श्रद्धेय श्री १००८ श्री आात्मारामजी महाराज से जैव ससार का ऐसा विरला ही
व्यवित होगा जो परिचित न हो | पूज्य आचार्य श्री जी ने अपने जीवन काल मे जैन
धर्मविपयक अनेको ग्रन्थो की रचना करके समाज से अनजान अ्रन्वकार को दूर करने
का स्तुत्य प्रयास किया । इतना ही नही जैनेतर जनता को भी जन धर्म तथा सिद्वान्तो
से परिचित कराने के लिए भरसक परिश्रम से जैनागमो की सरल और सुवोध गली
से व्याख्याएँ की और जैन गासन का सम्मान बढाया | जैन समाज उन्तकी ज्ञान-
गरिमा से अपने आ्रापको गौरवान्वित समभता है ।
जिन जैनागमों की सविस्तर टीकाएँ लिखी हैँ, उनका स्वाध्याय करके मुमुक्षुजन
अपने को कृतकृत्य मानत्ते हें। थी श्राचाराज्भसूत्न जेसे आगम की भाषा विवेचना अभी
श्रभी आचाये श्री झआ्रात्माराम जैन प्रकाशन समिति' की ओर से प्रकाशित हुई है ।
यह प्रथम अवसर है जबकि इस सूत्र की सम्पूर्ण रूप से विशद् व्याख्या प्रकाशित हुई है ।
हम अपने प्रेमी पाठकों के कर कमलो में आचार्यवर्य द्वारा अनुवादित श्री उपासक-
दभाजुसूत्र को समपित करते हुए अत्यन्त हप॑ का श्रनुभव कर रहे हैं । वेसे तो समस्त
श्रुतागम आत्मोत्थान का परम श्रेयस्कर साधन है, फिर भी प्रस्तुत सूत्र गृहस्थवर्ग
के लिए परमोपयोगी है। यदि झ्राज जनता सूत्रोक्त नियमों का अनुकरण करे तो
इससे समाज और देण का नैतिक तथा चारिज्रिक उत्थान हो कर सभी प्रकार की
उपस्थित विपम समस्याएँ स्वयं विलय हो सकती हैं ।
हम प्रस्तुत सूत्र को किन्ही विशेष कारणों से प्रकाशन मे विलम्ब के लिए पाठकों
से क्षमा चाहते हें । प्रकाशन समित्ति ने झीघ्रातिशीघ्र अन्य सूत्रों के प्रकाशन करने
का दृढ सकलप किया हुश्रा है । जास्त्रो के प्रकाशन के लिए ६२५) रु० से कोई भी
व्यक्ति स्थायी सदस्य बन सकता है। इसके विक्रय से अन्य सूत्र, ग्रन्थ प्रकाशित
होते रहेगे। अन्त मे समिति उन्त महानुभावों का हादिक धन्यवाद करती हें जिन्होंने
किसी भी रूप में उक्त बास्त्र के प्रकाशन मे सहायता की है। साथ ही शर्मा प्रेस
अलवर के ग्रध्यक्ष तथा उनके कर्मचारियों का भी धन्यवाद करते हैँ जिनके सतत
प्रयास से सूत्र शीघ्र तथा युच्दर रूप में प्रकाशित हो सका है। जास्त्रमाला के
सदस्यों की यूची साथ ही दी जा रही है ।
निवेदक--पच्मालाल जैन,
सन््जी श्री आचार्य आत्मारास जेन प्रकाशन समिति
लुधियाना ।
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