अंतिम चढ़ाई | Antim Chadhai
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
114
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)किचन में पारो आ गयी थी और अपना काम कर रही थी। पारो ने मुस्करा-
कर उसे नमस्ते की । उत्तर में वह हँस दी । पारो ने उसे ऊपर मे नीचे तक
देखा और बोली, “अब मत जाना आप, विना औरत के घर श्मघान लगता
है।”
उसने उत्तर नही दिया। वस, मुस्कराकर रह गयी 1 आँगन में लगा कैले
का पेड़, जो उसने लगाया था, अब काफी बड़ा हो गया था। उसे देख उससे
अन्दाजा लगाया वाकई वह काफी दिन वाहर रही 1
“चाय मैं बनाऊँ या आप बनायेंगी ? ” पारो उसके निकट आती बोली,
बयोकि उसे पता था उसे किसी के हाथ की चाय पसन्द नही थी।
“ब्यों, इतने दित तू बनाती नहीं घी, मुझे देखते ही जी चुरा रही है।
मुझे भी तो बनाकर पिला। देखूँ, कैसी वनाती थी ।””
“नहीं, आप ही बनाइये, मेरे हाथ की चाय आप पसन्द नही करेंगी 17
पारो घेंपती हुई बोली 1
“अच्छा,” कहती वह किचन में गयी। किचन में जाते ही उसे विचित्र-
सा लगा । चाय-नाइता बनाकर उसने ट्रे मे लगा दिया और पारों को पकड़ा
दिया।
“आञपकी चाय ?” ट्रे उठाकर भीतर जाते पारो आइचमें से बोली ।
“यही ले लूंगी, तु ले जा 17
पारो के भीतर जाते ही बावूजी को आवाज आयी, “नीरा, चाय लो
आकर 1”
“बाबूजी, अभी ब्रश नही किया है।” वह झूठ बोल गयी।
वह अपनी चाय लेकर बैठी ही थी कि ऊपरवालो की खिडकी खुली और
भाभीजी ने नीचे झाँका ।
नीरा आ गयी ।”
“नमस्ते भाभीजी, आप अच्टी हैं न ?” उसने अपने चेहरे की घवराहद
को छुपाते हुए पूछा ।
“हम तो ठीक हो हैं, अपनी कहो, अब मत जाना, हमसे झूठ कहकर
गयी कि दो दिन में लौट आऊँगी मौर इतने दिन लगा दिये। मुझे तो रात
को ही आवाज मिल गयी थी। इच्छा तो रात ही हो रही थी तुमसे बात
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