जैन - विवाह - संस्कार | Jain - Vivah - Sanskar

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Jain - Vivah - Sanskar by कुमारी कनकलता - Kumari Kanakalata

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(१६ ) # हाँ दी ह* ही ह। झ स्ि भा उसा अस्पप्तान्न ुद्धि कुछ कुछ स्वाहा । यद्द मन्त्र बोज्न कर गृहस्थाचाये वर और दन्या के तिक्षक फरे। परिणयन बाक्य इसके उपरान्त बद कन्या श्रीसिद्यन्त्ररान, शास्त्र आदि गो वेदिका में विशजपान हैं उन्हें नमस्छार करें भौर सुस-आ्रध्ति $ तिये बर-क-था परम्पर में मुखाइक्ञोकन कर कन्या बर छे के में पुथ्पप्राज्षा पहनावे !& इसके बाद प्रथम फन्‍या छा मामा और प्रीछ्चे पिता और कदुम्पी जन पर से फ्हेँ कि दम यद्द कन्या आपको ख्तेवा फे किये प्रदान करते हैं, आप इसे स्थीझार करें। इसके उत्तर में घर कद्दे गूणे5६! भर्थात्‌ मुमे स्वीफार है। पीछे कन्या का पिता कट्दे, कि 'इसका घमे से पालन करना” । इसके ८त्तर में नर धीसिद्धयन्श को समस्फार छर कट्दे कि मैं घमे, अथे ओर काम से पाकन करू गा ।? संफल्पघारा कन्या का पिता घर के दाथ पर बारीक बक्ष की धारा सकक्‍हपमन्त्र के उच्चारशपूर्येक देये। कु सस्‍्तस्तिश्री यजमानाचाय प्रमुति मच्पणनानां सद्धम भी 4८] रे घलायुरारोग्पेश्वर्या भिरद्धिरस्तु, अधमगव॒तों मद्ापुरुपरप हर केन- रू रत पा बल्ब ते व ऋत «मत और झाव रण छश ऐैना उराष्टिये करतागाज




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