दिलफ़रोश नाटक | Dil Farosh Natak

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Dil Farosh Natak by जयराम दास - Jayaram Das

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दिलफराश | १६ तिलहा-वाह ! क़्या खूब ! तू आराम जो पाये तो केह । हमको जब आतिश हिजरा से जलाले तो कहे ॥ क्या यही फज् है कि कासिद के पयाम दिलबर । जब कि आशिकको पयामे अजल आये तो कहे । गुलशन-आपके आशिक का पता ज्गाना। क्या आसान काम जाना * गाना | वाक्मी खबारेया न पाई मोरी गोइयां । मे हारी मे वारी में हारी, हाय जान जान | वाकी खबारिया ०- देखा भाला जादू ढाला मेरी जान; दृढा सारा नदी नाला हूँ हेरान । इधर उधर डगर डगर नजर करत हू हलकान । दुशवार था दुशवार था दुशवार था मेहरबान॥ बनके जासूस की तलाश उसे घर दर में । पर कही उसका पता न पाया दुनिया भरमे ॥ जा निसार वेशुमार है न जार कदरदान | वाकी ० - तिलद्दा--उस माहरू का नामा जो लाया है, इसी लिये पहुँचा है, नामचर का दिमाग आसमान पर | क्या तू अब भी न बतायेगी, या तू हमे बातों दी में डड़ा- थगी या कुछ पत्ना भी बतायेगीः-- क्या कहा, पाया भी उस बानिये रुसवाई को । खत दिया याकि नहीं दिलबरे रानाई को ॥ गुलशन-अच्छा अच्छा, समाअत फरमाइये;न घबराइय।




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