संस्कृत साहित्य कोश | Sanskrit-sahitya Kosh

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Sanskrit-sahitya Kosh by डॉ. राजवंश सहाय 'हीरा' - Dr. Rajvansh Sahay 'Hira'

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अप्पय दीक्षित | ( १३ ) [ अप्पय दीक्षित श्रचाजका कर, £::७-४४ ८७४०:७४०८७५४-४:७८७०७४:७८:०८४:७-७ (2 च२। /्िष्यारराीशयर पर सर, #१०-१नीि ८ 23०५० मी९ध3ज>ट७+ी ९ ढ 0. 4325८ ३ध3०/ 5 जा १०१०-१० कयधिजतीकनी #03०25०८५:८/5 ४१८९०८६/०७ ७ “५७०८ संक्षेप नही । संहितापाठ को पदपाठ के रूप में परिवत्तित करने के लिए इसमे विशेष नियम दिये गए है। (सम्पादक . डॉ० सुयंकान्त) सामसप्तलक्षण--यह पद्चवद्ध लघुकाव्य अ्रत्थ है, जिसका प्रकाशन महीदास की विवृत्ति के साथ सस्कृत सीरीज, काशी से १९३८ ई० में हुआ है। अथव॑वेदीयग्रन्ध--'अथवंवेद' के अनेक अनुक्रमणी म्रन्थ हे, जिनमे अबर्व का विभाजन, मन्त्र, उच्चारण तथा विनियोग संवधी विचार है। चरणव्यूह-- इसमे वेद के पाँच लक्षण ग्रन्थ उल्लिखित है--चतुरबव्यायी, प्रातिशारूय, पतन्‍्चपटलिका, दन्त्योष्ठविचि एवं वृहसत्र्वानुक्रमणी | इनमे से प्रथम दो का विवरण विक्षाग्रन्थो में है। दे० शिक्षा । १ पनन्‍्चपटलिका--इसये पाँच पटल या अध्याय है तथा अथवं के काण्डो एवं मन्त्रो का विवरण दिया गया है | इसमे ऋषि और देवता का भी उल्लेख है । २ दन्त्योछविधि---इसमे अथवंवेदीय उच्चारण का विशेष विवरण प्राप्त होता है। ३ वृहत्सर्वानुक्रमणी--इसके प्रत्येक काण्ड मे सुक्तो के मन्त्र, देवता तथा ऋषि का विवरण है। यह वीस काण्डो मे विभक्त है। उपयुक्त तीनो ग्रन्थों का प्रकाशन दयानन्दमहाविद्यालय, लाहौर से हुआ था। आधार ग्रन्थ--वैंदिक साहित्य और संस्क्ृति---आ ० वलदेव उपाध्याय । अप्पय दीक्षित--प्रसिद्ध वैयाकरण, दाशंनिक एवं काव्यशार्री अप्पयदीक्षित सस्क्ृत के सर्वतन्न्रस्वतन्त्र विद्वानु के रूप में प्रतिष्ठित हैं। इन्होंने अनेक विषयो पर १०४ ग्रन्थों का प्रणयन किया है। ये दक्षिण भारत के निवासी तथा तंजौर के राजा शाहजी के सभापण्डित थे। इनका समय १७वीं शताब्दी का अन्तिम चरण वथा १८वीं गताब्दी का प्रथम चरण है। इनके द्वारा रचित ग्रन्थों की सूची इस प्रकार है---१. अद्वैत वेदान्त विपयक ग्रन्थ---श्री परिमल, सिद्धान्तलेशसग्रह, वेदान्त- नक्षत्रवादावलली, मध्व॒तन्त्रमुखमर्दनम्‌, न्‍्यायरक्षामणि । कुछ छह ग्रन्थ । २ भ्क्तिविषयक २६ भ्रन्ध--शिखरिणीमाछा, शिवतत्त्वविवेक ब्रह्मतर्कस्तव ( ऊचुविवरण ), आदित्य- स्तवरत्नम्‌ इसकी व्याख्या, शिवाह्वैतनिर्णय, शिवध्यानपद्धति, पञ्चरत्न एवं इसकी व्याख्या, आत्मापंण, मानसोल्लास, शिवकर्णामृतम्‌, आनन्दलहरी, चन्द्रिका, शिवमहिम- कालिकास्तुति, रत्नत्रयपरीक्षा एवं इसकी व्याल्या, अरुणाचलेश्वरस्तुति, अपीतकुचा- म्वास्चव, चन्द्रककास्तव, शिवाकंमणिदीपिका, शिवपूजाविधि, नयमणिमाहा एवं इसकी व्यास्या । ३ रामानुजमतविषयक ४ ग्रन्थ--नयनमयूखमालिक्ना, इसकी व्याख्या, श्री वेदान्तदेशिकृविरचित 'यादवाभ्युदय” की व्याख्या, वेदान्तदेशिकविरचित 'पादुका- रहस्य' की व्याख्या, वरदराजस्तव । ४ मध्यसिद्धान्तानुसारी २ ग्रन्थ-न्यायरत्नमाला एवं इसकी व्याख्या । ५ व्याकरणसम्वन्धी ग्रन्‍्थ--नक्षत्रवादावदी । ६ पूर्वमीमासाशात्र- सम्बन्धी २ ग्रन्य--नक्षत्रवादावद्टी एवं विधिर्वायन। ७ अलकारशास्रविपयक ३ ग्रन्थ--वृत्तिवात्तिक, चित्रमीमांसा एवं कुवलूयानन्द । वृत्तिवात्तिक--बयह शब्दशक्ति पर रचित लघु रचना है जिसमे केवऊ दो ही शक्तियो--अभिधा एवं लक्षणा का विवेचन है । लक्षणा ने प्रकरण में ही यह ग्रन्य समाप्त हो जाता है। यह ग्रन्थ अधुृरा रह गया है । वृत्तय. काव्यसरणावलूुंकारप्रवन्धृत्ति, अभिधा लक्षणा व्यक्तिरिति तिद्धनो निरूपिता ॥




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