तुम्हें सूर्य का निखार दूँगा | Tumhe Surya Ka Nikhar Dunga

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Tumhe Surya Ka Nikhar Dunga by रा॰ बा॰ अग्रवाल - R. B. Ageawal

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about रा॰ बा॰ अग्रवाल - R. B. Ageawal

Add Infomation AboutR. B. Ageawal

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
पराजय लक्ष्य ! मेरे पौरुष का उपहास, पराजय- मेरी योजना, कम-व्यवस्था पर प्रहार ! सोचता हूँ, बैठता नही, गाता हूँ, रोता नहीं में आग्ाबादी जो हैऔर हैं रहम्पवादी । कठिन समय-- सर्देव मेरे पग नयी मजिल पर चल पड़े है, मैंने बुराई मे भी कुछ अच्छा ही पाया है ! णि विजय प्राप्ति के लिये, शछु को उसके प्रिय से लडा कर-शठ्ध के शत्रु से मिच्तता कर लो सुचारु रूप से कार्य करने के लिये शारीरिक तथा मानसिक विकास अनिवाय है! प्रत्येक मानवीय जीवन सामाजिक इतिहास की पृष्ठ-भूमि को चुनौती तथा सृष्टि मे निश्चित समय पर शय खला का एवं महत्व- पूणअग है! पाप-सज्ञा मानवीय इष्टिकोण की सकीणता र्श




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now