पउमचरिउ (भाग-१) १९५७ | Pawamchariwo Vol-1; (1957)

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : पउमचरिउ (भाग-१) १९५७  - Pawamchariwo Vol-1; (1957)

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about हीरालाल जैन - Heeralal Jain

Add Infomation AboutHeeralal Jain

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
यदि जननी कहा जाए तो कोई अत्युक्ति नही होगी। इसके अध्ययन मनन के बिना हिन्दी, गुजराती आदि आज की इन भाषाओ का विकासक्रम भलीभांति नही समझा जा सकता है। इम क्षेत्र मे शोध-खोज कर रहे विह्मानो का कहना है कि उत्तर भारत के प्राय सभी राज्यो मे, राजकीय एवं सार्वेजनिक ग्रन्धागारों मे, अपश्र श की कई-कई सौ हस्तलिखित पाण्डुलिपियाँ जगह- जगह सूरक्षित है जिन्हे प्रकाश मे लाया जाना आवश्यक है। सौभाग्य की बात है कि इधर पिछते कुछेक वर्षो से विद्वानों का ध्यान इस ओर गया है। उनके सत्रवलो के फतस्वरूप अपम्रग की कई महत्त्वपूर्ण कृतियाँ प्रकाश में भी आई है। भारतीय ज्ञानपोठ का भी इस क्षेत्र मे अपना विशेष योगदान रहा है। मूर्तिदेवी ग्रन्थमाला के अन्तर्गत ज्ञानपीठ अब तक अपभ्र श॒ की लगभग २४५ कृतियाँ विभिन्‍न अधिकृत बिद्वानो के सहयोग से सुसम्पादित छप मे हिन्दी अनुवाद के साथ प्रकाशित कर चुका है। प्रस्तुत कृति 'पठम- चरिउ' उनमे से एक है। मर्यादापुरुपोत्तम राम के चरित्र से सम्बद्ध पठमचरि3 के मुल-पाठ के सम्पादक है डॉ० एच सी भायाणी, जिन्हे इस ग्रन्थ को प्रकाय में लाने का श्रेय तो है ही, साथ ही अप श्रण की व्यापक सेवा का भी श्रेय प्राप्त है। पॉच भागो मे निवद्ध इस ग्रन्थ के हिन्दी अनुवादक रहे है डॉ० देवेन्द्र कुमार जैन । उन्होंने इस भाग के सस्करण का सशोधन भी स्वय कर दिया था। फिर भी विद्वानों के सुन्नाव सादर आमन्त्रित हैं । भारतीय ज्ञानपीठ के पथ-प्रदर्णक ऐसे जुभ कार्यो मे, आशातीत धन- राशि अपेक्षित होने पर भी, सदा ही तत्परता दियाते रहे हैं। उनकी तत्प रता को करार्यरूय में परिणत करते हे हमारे सभी सहकर्मी । इन सबका आभार मानना अपना ही आभार मानना जैसा होगा । श्रुतपच्रमी, गोकुल प्रताद जैन ८ जून, १६८६ उपनिदेशक भारतीय ज्ञानपीठ




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now