प्रासाद - निवेश | Prasad - Nivesh

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Prasad - Nivesh  by डॉ. द्विजेन्द्रनाथ शुक्ल - Dr. Dvijendranath Shukla

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(१७) प्रायाद के वास्तु पुष्प-्मणडल वे झौपोद्धातिक आचीन मर्भोट्घाटत मे एफ तथ्य और यहा निर्देश्य है, वह यह कि सूर्योदय के साथ इसकी श्रानुपगिदता सवेतित है। सुथी कुमारी डा« क्रैमरिय ($६६ पी. 1, 9 17) का एतद- विपवक निम्न उद्धरण बढा ही तथ्योद॒घाटक है -- >ुप्र6 5एव०6 ० 016 ढ्था॥, ता ए्रवग009] ]ाता॥॥ (०श9००89, 1$ एशएशपट्त 55 तैदा।इ7८कशत 09 इपाइश क्षाएं इ्ाइटॉ, 09 16 ए0118 जाराह [16 $71 8छगरा॥।ए शाश(ए६५ 20006 थ्यापे हश5 900ज़ ९ गर0णगा200 89 हा हैं छा बाते ९ बाएं 253 09 6 सात आते 8000 एछगरा$ 10 ७ ॥हर्शणढ 1९965९॥९० 0७५ पद ेशएड्राभा ०0 ग्रधाव3६ एी 8 इतृप्स्‍ाट [ए 7२ 4+य्ट इबृष्घर 0056 ग907शला 10 026 'ाफाल ता छह व्यात. 1 ०णाहरएा$ ९ 4 एज ९/|३जीफआीलरत 5५ (16 छायावाओ़ ए205 01 697057165, 118 घएए400 5007188 आप 50050 कछछ0ाण15, ए851 0 जल , थाएं 5001 थशाएं पिद्रता_ पपीह ध्या 5 प्रध्रत6 ण्वीधत एुक्षणशाएत्रश गिणए-०गरघटव्त (रए > 58 3) 5008 ॥. 5एफगार्थाए शीएजा) 88 शाए॥श गरज्याएव३, ज्रीधदा5ड ००181666 1 15५1, 6 जी१७९ ० फल्टबाता 1 ८ए०णंआ (ऐिर # 89 4 8 8 शावव |] 176 पऐश्ावीष्या101 ० धा& 51ृण४९४ जात पार पत्ता 1 वा शाह जो 240 ॥6ठा, (0 अदह ३1५ एलनेएप्ड्४ ६० फट 3#क्राताकया जी थार क्राततत चररणफोण. तिल ५९० 1९७7९घथ्या5 ३७7९. ७ 1९४९1९१ ढव011, 8 8९० ता $8०0108 0 छएाप्रक ० 9ग६ 0४ घाह ह70फकत 510010 7158 80098 ए1... ति ॥ पर०६ 1०0 शैडाड 03. छी३ 800, ३$028067 10 वि82 एटा (& 8 गर 1112) ए8 जझाह8 ऐती+ दया आ०चांत 6 ९४६७ था गीता 6 1015 8 #क्रापवत8 छोॉग०2 ० छोट बच्थ्या। ($ 5 शा 5 2 16) चढ़ ्रार 90छ8७७० पर €्थाएं1 शाते 8 €एऐं ० थाह 88८८४ #1०७०॥०४ प्रफ॒णधाप॑ प्रात 59302, पर.ह वचरशाए68186० 708700 (द(त.50).. िका ॥ 2]50 ॥ 16105 ऐएच्ाजर्व बार एश्ञ्5 था ध्याती.. ता 1 हार (णए6 185६ ॥४. ७0५ए४४०ा.._ 116. भ३ञंम्र एएशएड्प्रथ्रापैशंक,.. 18. धाहए९< वाहहाब्ा पाएं प्र/॑ध्काफिआव्य एॉ॥1 15 10 001 01 हीढ गया शत हा हञा०णा। , 1. 15 ए४ आ्र/लिदछप! एिप्राबंबणा रण पाए एजापाएड, 8 एग6०७४( 0९105 45०८७॥ 89 15 फ़ाठस्लगा का टबावी ? ऋऊषपर स्वेद का चतुभ प्लि' में पृथ्दी-मण्डल अर्थात्‌ वास्कु-मण्डल की वैदिक प्ृृष्ठ-भूमि का ग्राभास दिया जा चुका हैं। अब यह देखना है कि वास्तु- शास्त्र में प्रतिपादित नाना आइृतियो वे वास्तु-मण्डलो मे वेदिक उत्पत्ति अयृत्ति




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