वैशेषिक दर्शन | Vaisheshik Darshan

Vaisheshik Darshan by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ६ ) सहायता से अनुभव कर सकते हैं । पर सामान्य और विशेष इन्द्रियों के विषय नहीं । ये बुद्धि से सम्बन्धित हैँ और इनकी सहायता से विभिन्न प्रकार के पदार्थों का समानता और असमानता के अधार पर वर्गीकरण कर सकते हैं या उनकी श्रेणियाँ बना सकते हैं ) जो श्रेणी किसी विशेष णी का भाग है उसे विशेष कहेंगे और जिस श्रेणी के अन्तर्गत वह आती है वहु सामान्य है। सामान्य भी दो प्रकार का माना गया है-- पर और अपर | समवाय-- यह न्याय धौर बैशेषिक सिद्धान्त वालों की निजी कल्पना है जो अन्य किसी दर्शन और शास्त्रीय विवेचन में नहीं पाई जाती इसका आशय किन्हीं दो वस्तुओं में पाये जाने वाले ऐसे सम्बन्धों से है जो अमिट और सर्देव स्थायी (मित्य) हो | उदाहरण के लिए हम कटोरे में दाल खा रहे हैं। उस समय कटोरे और दाल का सम्बन्ध अवश्य है । पर ज्यों ही हमने भोजन समाप्त करके कटोरे को धोकर रख दिया कि उसी समय वह सम्बन्ध मिट जाता है । पर एक सम्प्रन्ध ऐसा होता है कि जसे सूत वस्त्र का सम्बन्ध । यह अमिट सम्बन्ध है और तभी मिट सकता है जब कि वस्त्र नष्ट होकर न तागा रहे न कपड़ा रहे । इसी प्रकार का सम्बन्ध वाय और उसकी गति में है। जहाँ बाय रहेगी वहाँ उसकी गति किसी न किसी रूप में रहेगी । द्रव्य का स्वरूप -- सृष्टि के सब कार्य कुछ मूल पदार्थों से चल रहे हैं। हम साधारण रूपसे इस जगत्‌ को पंचतत्वों की रचना कहकर इसी को सृप्टि विज्ञान का सार समझ लेते हैं, पर इससे कोई लाभ नहीं होता । ज्ञावका उद्देश्य वस्तु के यथार्थ स्वहूप को समझना और उसका उचित उपयोग करना ही हो सकता है । इस प्रकार का ज्ञान ही संसार में सुख का कारण है ओर इसके विपरीत भज्ञान दुःख उत्पन्त करते धाला है । यदि




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