धर्मोपदेश रत्नमाला भाग - 3 | Dharmopadesh Ratnamala Bhag - 3
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
30
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about सूर्यदत्त शर्मा - Suryadatt Sharma
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ४?)
# आओ स्वागी शेकराचार्परचित #
दलाल.
४ प्रश्नोत्ती ॥ २॥ >
६21:%१४५६3:०८३६%८७३
अपार-संसार-सपुद्रमध्ये,निमेज्जतो मे शरण किमारित ।
गुरो कृपाछो कृपया वर्देतद | विश्वसपादांबुज दधिनोंका ॥ १॥
अथे-“दयाहु गुर | कृपा पूर्वक कथन करो कि इस अपार-संखार
धमुद्र के बीच में मुझ इडूवते का फ्या-सदहारा है 1 जगर्दाश्धिर के चरण
फमलंरुपी दृर्धिनोका ही सहारा हे।
बद्धांहि को यो विषयानुरांगी; की. वा विंमुक्तिनषिये विराक्ति!
कोवारित घोरो नरक: स्वदेह) स्तृष्णाक्षयरंस्वगंपुद किमस्ति ॥२॥
अर्थ-वैधा हुआ फौन है ! जो विषय, -भोगो मे. फैंसी हुआ है।
यूकि क्या है ! विषय भोगों से छुटकारा पाना । घोर नरक कया है
अपनी देह । स्वग्पद् क्या हैः :तृष्णा को नाश के
संसारुत्क/ श्रुतिनास्मबोषः, को मोक्ष हेतुः कथितस्सएवं ।
द्वारोकिपेकन्नरकस्य नारी, का स्व॒गेदा प्राणभभतामहिसा || ३ ॥
अर्थे-संसार- को दुए करनेवांला:फ्या हूं! चेदों.से उत्पन्न हुआ
आत्मशान | मोक्त फा देतु क्या है! वही आत्मशान,। धरक का झुख्य
हार फया है ! नारी | स्वंगे देलवाली पस्तु क्यों हे! जीयों की अ
द्विसा अर्थात् किंसी प्राणी को दुःख नहीं पंहुंचांना।
शेते सुख कस्तु संमाधिनिष्ठी, जागाति को वा .संदर्सेद्रिवंकी ।
के शत्रवस्ता न्तपनेजाद्धिया णि, तान्यव॑ मित्राँणिं जितनियानि।४।
,._ अथे-छुख से कोन सोता है? जोसमांधि' में तत्पर है। ज्ञाग- '
ता कोन है जो से: असंत् के विवेक करता. है। शत कौन हे! |
अपनी ही इन्द्रियाँ । यदि वश-मेंकरछी जांय तो यही मिश्र हैं।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...