धर्मोपदेश रत्नमाला भाग - 3 | Dharmopadesh Ratnamala Bhag - 3

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Dharmopadesh Ratnamala Bhag - 3  by सूर्यदत्त शर्मा - Suryadatt Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ४?) # आओ स्वागी शेकराचार्परचित # दलाल. ४ प्रश्नोत्ती ॥ २॥ > ६21:%१४५६3:०८३६%८७३ अपार-संसार-सपुद्रमध्ये,निमेज्जतो मे शरण किमारित । गुरो कृपाछो कृपया वर्देतद | विश्वसपादांबुज दधिनोंका ॥ १॥ अथे-“दयाहु गुर | कृपा पूर्वक कथन करो कि इस अपार-संखार धमुद्र के बीच में मुझ इडूवते का फ्या-सदहारा है 1 जगर्दाश्धिर के चरण फमलंरुपी दृर्धिनोका ही सहारा हे। बद्धांहि को यो विषयानुरांगी; की. वा विंमुक्तिनषिये विराक्ति! कोवारित घोरो नरक: स्वदेह) स्तृष्णाक्षयरंस्वगंपुद किमस्ति ॥२॥ अर्थ-वैधा हुआ फौन है ! जो विषय, -भोगो मे. फैंसी हुआ है। यूकि क्या है ! विषय भोगों से छुटकारा पाना । घोर नरक कया है अपनी देह । स्वग्पद्‌ क्या हैः :तृष्णा को नाश के संसारुत्क/ श्रुतिनास्मबोषः, को मोक्ष हेतुः कथितस्सएवं । द्वारोकिपेकन्नरकस्य नारी, का स्व॒गेदा प्राणभभतामहिसा || ३ ॥ अर्थे-संसार- को दुए करनेवांला:फ्या हूं! चेदों.से उत्पन्न हुआ आत्मशान | मोक्त फा देतु क्या है! वही आत्मशान,। धरक का झुख्य हार फया है ! नारी | स्वंगे देलवाली पस्तु क्यों हे! जीयों की अ द्विसा अर्थात्‌ किंसी प्राणी को दुःख नहीं पंहुंचांना। शेते सुख कस्तु संमाधिनिष्ठी, जागाति को वा .संदर्सेद्रिवंकी । के शत्रवस्ता न्तपनेजाद्धिया णि, तान्यव॑ मित्राँणिं जितनियानि।४। ,._ अथे-छुख से कोन सोता है? जोसमांधि' में तत्पर है। ज्ञाग- ' ता कोन है जो से: असंत्‌ के विवेक करता. है। शत कौन हे! | अपनी ही इन्द्रियाँ । यदि वश-मेंकरछी जांय तो यही मिश्र हैं।




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