शास्त्र सार सिद्धान्त मणि | Shastr Saar Siddhant Mani
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
198
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about प्रियादास शुक्ल - Priyadas Shukla
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भाग्टी ०-मुरुप्रकरण १. (१५९ )
न - शारदातन्त्रे
खआोक-परोपकारानेरतों जपपृजादितत्परः )।
अंम्रीधवचनः शांतों पेदवंदार्थपारगः ॥
भाषार्थ-केसा गुरु हो कि परोपकारी जप पूजा होम इनमें तपर हो
और बचन सदा विचार कर कहें शांतप्कृति चंचठतारहित बेदके अर्थ पर
रक्ष्य और वेदांतके विचारमें काठको व्यतीत करे ऐसा गुरु पूज्य है ।
अगस्त्यस्ताहतायाम 1
छोक-तत्त्वज्ञो मंत्रयंत्राणां मर्मवेत्ता रुस्यवित् ।
पुरश्चवरणकृद्धोमर्मत्रासिद्धप्रयोगवित् ॥
भाषाथे-हेशिष्य पुनः देखे ये छक्षणहों तेत्वको जाननेवाला मन्त्रतंत्का -
म्भवेत्ता अन्तसते मोह अज्ञानता विनाश “करे प्रयोगद्राभी औीरुष्णमन्त्र
सिद्ध हो अनुछ्ठानी हो पासंडी न हो यह गुरुका स्वरूप है । ः
छोक-तपस्वी सत्यवादी च गरहस्थों गरुरुच्यते ।
नेछ्िकी बह्मचारी वा यथा औनारदादयः ॥ 1,
भाषार्थ-देखो शिष्य गृह तपत्वी सत्यक्रा बोलनेवाठा गृहस्थ हो
जअहृचारी हो तो शीनाखूमुनिसम नेठिक शास्र! वाक्यका पालन करने-
चाझा हो धमैज्ञ दयाकरके युक्त हो और भी बहुत छक्षण परंतु सबका सार
शक श्लोकिम ।
छोक-उपंदेशेषु कुशलः सर्वाड्रावंयवान्वितः ।
तत्ववोधाय शिष्येपु सदेवाद्ितमानस! ॥ -
भाषाथे-हेशिप्प अब सबका आशय यह एक श्होकर्में कहा पति ,
उपदेशमें कुशछू हे। जिप्प्कार जिज्ञास समझ वही प्रकार उत्तर उसके
अश्षका दे अनेक हृष्टांददारा कक्ष्य कराय दे ओर तक्तका बोध भले विधि
शेष्यको करावे ऐसे लक्षण हों जायें सो' विचाखान ताको गुरुकर अपने
उद्दारका यत्व पूंछ ताको विचारे। अब पाखंडी धूर्त हो वाको गुरु न
करे सो प्रमाण । है
User Reviews
No Reviews | Add Yours...