संस्कृत का भाषा स्त्रीय अध्ययन भाग 2 | Sanskrit Ka Bhashashastriya Adhyayan Bhag 2

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Sanskrit Ka Bhashashastriya Adhyayan Bhag 2  by डॉ भोलाशंकर व्यास - Dr. Bholashankar Vyas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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निवेदन पिछले ढेढ सौ वर्षोमे यूरोपीय भाषाशास्तरियोने भारत-यूरोपीय भाषाओंके विषयमे कई उद्धावनाएँ की हैं | इन खोजने संस्कृत भाषाके महत्त्वकों ओर बढ़ा दिया है। भारतोय आये भाषाओंके भाषाशास्त्रीय अध्ययनके लिए तो संस्कृतका दुहरा महत्त्व है, एक ओर यह इन भाषाओकी जन्मदात्री है, दूसरी ओर सैद्धान्तिक भाषाशास्त्रतकके आवश्यक ज्ञानके लिए इसका परिचय अपेक्षित हैं। इधर कई दिनोंसे हिन्दीमें इस प्रकारके ग्रत्यकी आब- इयकवाका अनुभव किया जा रहा था, जो भापाशास्त्रीय दृष्टिसे संस्कृतका परिचय दे सके, जिससे हिन्दी जादि आधुनिक आर्य भाषाआके अध्येता छाम उठा सकें । इस विययपर अधिकाश अ्रन्थ फ्रेंच तथा जर्मनमर लिखें हुए हैं, तथा आग्ल भाषामें भी गरिनी-चुनी ही पुस्तर्क उपलब्ध है । वैसे डॉ० बटकृष्ण घोषकी अंग्रेजी पुस्तक एक दृष्टिसे सस्कृतका भाषाशास्त्रीय परिचय प्रस्तुत करती है, किन्तु भंग्रेजो भाषा नल जाननेवाज़े उसका छाभ नहीं उठा सकते । यही सोचकर आजसे छगभग छ वर्प पूर्व मेने इस पुप्तककी रूपरेखा तैयार कर ली थी | उस समय में मदन विश्वविद्याज्यके स्कूल आाव्‌ ओरियण्टल स्टडीजक़ै भाषाविज्ञान-विभागमें काम कर रहा था । मूछपमे पुस्तक वही लिखी गई थी, यद्यपि बादमें इसमें भोडा-वहुत हेर- फेर कर देना पडा । उस समम तक प्रो० टी० बरोकी 'संस्क्ृत लैँग्वेज'का प्रकाशन न हुआ था, किन्तु जिस रूपरमें यह पुस्तक छप रही है, उसमें मेने प्रो० वरोकी पुस्तकसे समुचित छाभ उठाया है। विश्येपतः क्रियाओंदे परि- इछेदसें मेने उनकी पुस्तकका उपयोग किया है ॥ इसके अतिरिक्त में मेये, ज्यूल ब्लॉस, वाकेरनागेल तथा डॉ० धोषका भी ऋणी हैँ, जिनसे मुझे सद्म पथप्रदर्शन मिलता रहा हैं। यदि इस पुस्तकसे भारतीय आये भाषाओंके मध्येताका कुछ भो छाम हो सका, तो में अपना श्रम साथक समझूंगा । गच्छतः स्खलन क्राषि भवत्येव प्रमादत' | हसरित इर्जनासतश्र समादयति सझयात वा कागो १४, जनवरी है च्छ “-मोलाशहूर न्यास




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