माण्डूक्योपनिषद् | Mandukyopanishad

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Mandukyopanishad by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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1 भीगौड़पादाझ्ार्य भी संस्पासी ही थे। डनके शिप्प झी सोबिष॒पादाघार्य थे मौर पग्ोष्रम्दपादासार्यके शिष्प भगवान इाइराखाय थे। ध्ाइरसम्पदायमें मो भाशारयपस्व॒तास्सक मगछाघरण मसिद्ध है उसमें भारम्मसे छेकर भीपधपादामाय सादि भगवान धादुरके शिप्योपर्यस्त इस सम्प्रदायक्ष श्राचार्योकी शिष्प-परस्फ्ण इस प्रकार दतसागी है-- नारायण फ्प्ममर्ष बसिष्ठ दार्क्ति व तथुश्रपराश्र च। भ्यास॑ झुर्य गौडपद मदधार्ग्त ग्रेविस्दयोगीन्द्रमवास्य शिप्यम॥ मीशझड्राघार्यम्रपास्प प्रपादशय इस्तामत्क्ष व शिष्पम | ते त्रोटबी बार्तिकक्रमम्यामस्मदूगुरुस्सस्ततमानतो5स्मि [# इससे विवित दोता है कि भ्रीगौडपादााय भगवान ध्रुकदरेय अज्रीके पिप्प थे । भगवाम्‌ भौड़पादाबायके प्रस्थोमि डसकी कारिकाएँ अगरासिरऊ हैं। इनका पक प्रस्थ झ्रीरत्त रगीताकर साध्य भी है जो बाणीविद्रास प्रेस भ्रीरंगमले प्रकाशित इस है । रख साप्पसे रुखक्ा महाग पोगौ दोता सिद्ध होता है। इसके सिया इसकय रखा हुआ एक सांकय क्रिकरा्ोदाय भाष्प भी मसिय है। परस्तु थद ढ्षग्र रचा है या लहदी--इस बिप्पमें विद्ाभोक्य मतभेद है। भस्तु इमें तो इस समय शक कप्ररिका मौपर दो कुछ विचार करना है। छारिकार्भोकी रचना बड़ी दी ऱदास झौर ममस्पर्दिनी है ! झतकी गणमा संसारके सर्बोत्क्ए साहित्यमें दो सकती है | यह तो रूपए कहा ही जा चुष्म है कि थे सद्धेतसियास्तक्ती भाधारशिस्ा हैं। शिस प्र्यर भामद्भगबद्ीताके विपयमे यद् प्रसिद्ध है कि व्गीता छुगीसा कर्मेस्पा किमसयेः शास््रविस्तरेश रुसों प्र्ार अप्रैत घाघके छिपे पद इंडतापूर्येंं कशा सा सकता ह कि पकमाय इस प्रस्धस्नक्प सापधातठापूर्यक क्रिया हुमा भनुशीस्रम दी पर्याप्त दो सकता है। इसमें साधन सिद्धास्द भौर ध्वमत नल-++++++++त+त3व... $ शाहरतप्पदायय धाक्राल्दरगते पूर्व आचार्य और शिप्पतज इठ मग्ठ्धपरपका एघाएग फिज करते हि [




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