श्री विपाक सूत्रम् | Shri Vipak Sutram
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
52 MB
कुल पष्ठ :
830
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सरगावकीय बविननप्नि] भापादीकासहित (??)
अनुवाद को सर्वाद्नप्रण ण्व सुख्दर बनाने के लिये भरसक प्रयत्न किया है । मूल और टीका में आर
प्रत्येक विपय का स्पष्ट, मरल ओर विम्दृत विवेचन किया गया है, यही इस अनुवाद की विशेषता है ।
अनुवादक मुनि श्री जी का परिश्रम सवा प्रससनीय है ।
इस अनुवाद तथा सशाधन की सफलता का सर्वेपरि श्रेय ते। जेन वर्मेठिवाकर, नैनागमरत्नाकर,
साहित्यरत्न, परमपृज्य गुरुदेव श्री श्री श्री १००८आचार्यप्रवर श्री आत्याराम जी महाराज का
ही है, जिन की असीम क्ृपादष्टि तथा आशीर्वाद से यह महान कार्य सम्पन्न हा पाया है, तथापि
मुनि श्री जी के प्रेमम रे आग्रह से मैंने भी इसके सशावन एवं सम्पादन में यवाशक्ति भाग लिया है ।
सरोधक का स्थान तो बहुत ऊंचा होता है, जिसके लिए में अपने को योग्य नहीं पाता ह, परन्तु इस बात
का' अवश्य हपे है, कि इस कारण आगमसंवा का सोभाग्य मुझे भी प्राप्त हुआ ।
प्रस्तत श्री विपाकसत्र कर्मवाद से सम्बन्ध रखता हे, ओर कर्मतरय का निरुपण इस से
कथानको के हारा फ़्िया गया है । इस सन्न के परिशीलन से मुके ऐसा अनुभव हुआ है कि इस से
वशित कई एक कथाओं का सकलन एक कठिन काये है | फिए भी इस ओर अनुवादक मुनि श्री जी ने
जहा अधिक से अधिक ध्यान दिया है, वहा मेने भी इसे यथाराक्प्र अपनी हाष्टि से ओमल नहीं
होने दिया | भापा, भाव ओर सड्डूलन आदि की अपेक्षा से इसे विशुद्ध बनाने के लिये प्रा ? प्रयास
किया गया, फिर भी इस विशालकाय शास्त्र में ब्रुटियों का रह जाना असम्भव नहीं, अत अपनी
स्खलनाआ के लिये वराचक्रवृल्ट से विनम्र क्षमायाचना करता हुआ में अपनी सक्षिप्त विज्ञप्ति को
समाप्त करता हू ।
मुनि हमचन्द्र,
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