भारतीस्तव | Bharatistav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भारतौस्तव: (१०) ध्वजिनीवानराणां वशयित्वा नरेन्द्र:। यमिनां सावेभीमोी मनसां वा विचेष्टा: ॥2णा॥। (११) अनयद्राक्षतीय कुलमारय यमस्य । दुरहड्भारम्‌ले हृदयरथः पुमान्‌. वा ॥४६॥ (१०-११) यहींपर उन नरेंद्रने बानर-सेनाओंको इस तरह अपने वशमें किया जिस तरह एक संयमी-सम्राट मनुष्योंके मनकी चेष्टाओं- को अपने वशमें करता हैं और उन्‍होंने बसे ही राक्षसकुलको मृत्युके मुखमें ' पहुंचा दिया जेसे हृदयस्थ पुरुष दुरहंकारके मूलको पहुंचा देता हे ॥ ४(५-- ४ ६।। (१२) इह जातो यदूनां कुलपुत्रों मुरारिः । महतां भारतानामपि पश्यन्‌ विनष्टिम्‌ ॥४७॥ (१३) अगमद्‌ युद्वरक्ष॑ परतत्त्वोपदेष्टा । नरनारायणात्मा5 कृत कर्मापदेशम्‌ ॥४८॥ (१२-१३) यहींपर यदुकुलपुत्र श्रीमरारी उत्पन्न हुए थे। महान्‌ भरतवंशका सर्वनाश देखकर भी वह परतत्त्व-उपदेशक संग्राम- भूमिमें गये और उन नर-नारायणने कर्मोपदेश किया ॥४७-४८॥। (१४) इह तद्‌ ब्रह्मतेजो- बहुल क्षत्रवीयम्‌ । नरनाथेषु मूते. जनकायेषु वातम ॥४०९॥ (१४) यहींपर वह ब्रह्मतेजबहुल शुभ क्षात्र वीयेँ जनकादि नर- नाथोंमें मूतिमान हुआ था ॥४९॥ (१५) तब पूत्रै: पुराणै-- विंवृतोडप्यम्ब योडसों ।. अमितस्यांश एवं. प्रमितो वेमवस्‍्य ॥००॥ २१




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