भारतीस्तव | Bharatistav
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
51
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भारतौस्तव:
(१०) ध्वजिनीवानराणां वशयित्वा नरेन्द्र:।
यमिनां सावेभीमोी मनसां वा विचेष्टा: ॥2णा॥।
(११) अनयद्राक्षतीय कुलमारय यमस्य ।
दुरहड्भारम्ले हृदयरथः पुमान्. वा ॥४६॥
(१०-११) यहींपर उन नरेंद्रने बानर-सेनाओंको इस तरह अपने
वशमें किया जिस तरह एक संयमी-सम्राट मनुष्योंके मनकी चेष्टाओं-
को अपने वशमें करता हैं और उन्होंने बसे ही राक्षसकुलको मृत्युके
मुखमें ' पहुंचा दिया जेसे हृदयस्थ पुरुष दुरहंकारके मूलको पहुंचा देता
हे ॥ ४(५-- ४ ६।।
(१२) इह जातो यदूनां कुलपुत्रों मुरारिः ।
महतां भारतानामपि पश्यन् विनष्टिम् ॥४७॥
(१३) अगमद् युद्वरक्ष॑ परतत्त्वोपदेष्टा ।
नरनारायणात्मा5 कृत कर्मापदेशम् ॥४८॥
(१२-१३) यहींपर यदुकुलपुत्र श्रीमरारी उत्पन्न हुए थे।
महान् भरतवंशका सर्वनाश देखकर भी वह परतत्त्व-उपदेशक संग्राम-
भूमिमें गये और उन नर-नारायणने कर्मोपदेश किया ॥४७-४८॥।
(१४) इह तद् ब्रह्मतेजो- बहुल क्षत्रवीयम् ।
नरनाथेषु मूते. जनकायेषु वातम ॥४०९॥
(१४) यहींपर वह ब्रह्मतेजबहुल शुभ क्षात्र वीयेँ जनकादि नर-
नाथोंमें मूतिमान हुआ था ॥४९॥
(१५) तब पूत्रै: पुराणै-- विंवृतोडप्यम्ब योडसों ।.
अमितस्यांश एवं. प्रमितो वेमवस््य ॥००॥
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