श्री कूर्मपुराण | Shri Koormapuran

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Shri Koormapuran by चौधरी श्रीनारायण सिंह - Chaudhary Shrinarayan Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( हूांड .) | वर्तमान कमपुराण के वक्ता-भोता दा वर्तमान वामनु राणतथा भविष्य, ब्रह्म एवं लिज्भ जैसे कुछ अन्य पुराणों के विपरीत जिन्होंने कि अपने मूल -श्रोता को वदल डाला है, कूर्मपुराण उन महापुराणों में हैं जिन्होंने अपने मूल वक्ता-श्रोता को सुरक्षित रखा है और इस रूप में अपनी मूल प्रकृति को सुरक्षित रखा है। मत्स्य-पुराण (५३.४६-४७) में उपलब्ध सूचना के श्रनुसार (जो कि पहले उद्वृत है) कूर्मपुराण इन्ध्रयुम्त के आडुयान के माध्यम से कूर्म द्वारा नारदादि म्ापयों को सुनाया गया है। वर्तमान कूमपुराण में भी कूर्मे तथा ऋषिगण प्रथम या मौलिक वक्ता-थ्रोता माने गये हैं और प्रथम अध्याय में इन्द्रययुम्न की कथा भी कही गयी है । वर्तमान कूर्मपुराण में प्राप्त वक्ताओं और श्रोताओं के विभिन्न वर्गों को नीचे प्रदर्शित किया जा रहा है :-- थ १. कूर्म तथा (नारदादि) ऋषि (१. १. ३१ से अ० ११; २. ४३-४४. ६७) जैसा कि स्वयं कूर्मपुराण में बताया गया है कर्मपुराण के ये प्रयम वक्ता-श्रोता हैं : एवद्ट: कथितं विप्रा भोगमोक्षप्रदायक्रम्‌ू। कौर्म पुराणमखिलं यज्जगाद गदाघर: 1॥1 (२.४४. ६८) कूर्मे और ऋषियों का यह संवाद वर्तेमान कूर्मपुराण के रूप में सूत ने नेमिपारण्य के ऋषियों को सुनाया । पर कूर्मपुराण के वे अंश जहाँ कूर्में और ऋषियों के स्पष्ट निर्देश हैं नीचे दिखाये जा रहे हैं : १.१.३१ से अध्याय ११ तक (कर्मयोग तथा सर्गवर्णन एवं पार्वती का माहात्म्य) २. ४३-४४. ६७ (प्रतिसर्ग या ४ प्रकार का प्रलय) । २. रोमहपंण सूत तथा नैमिपीय ऋषि-(१.१.१३०; १२-२६; २७.१-७; ३८-५१; २,३४-३७; ४१-४२; ४४-६८ इ०) । यद्यपि रोमहरपण सूत कूर्म तथा ऋषियों के पंवाद को वर्णन करने वाले हैं पर उपर्युक्त अष्यायों में सूत वास्तविक वक्ता प्रतीत होते हैं केवल वर्णन करने वाले नहीं । इन अव्यायों के विपय अधोनिदिष्ट हैं : १.१,१-३०--सूत कूमेपुराण को प्रारम्भ करते हैं । १.१२-२६ वंश तथा वंशानुचरित । १.२७.१-७ सूत युग धर्म के विपय में व्यास तथा अर्जुन के संवाद को प्रारम्भ करते हैं । १.३८-५१ भुवनकोश, ज्योतिःसन्रिवेश, चतुर्दश मन्वन्तर, वेदव्यास तथा शिव के अवतार एवं वेदिक शाखाओं का वर्णन । २.३४-३७ तीर्थवर्णन । २.४१-४२ तीर्थवर्णन तथा तीर्थवर्णन का उपसंहार । २.४४-६७ इत्यादि--कूर्मपु राण की अनुक्रमणिक तथा फलश्रुति। , वस्तुत: सूत द्वारा मुख्यहूप से ये हो विपय पूराणों में वर्णित होते हैं । ३. व्यास और अर्जुन (१-२७-२८) । व्यास यहाँ अर्जुन से युग-धर्मों और विभेषत: कलिधर्मों का वर्णन करते हैं और कलिदोपों से मुक्ति के निमित्त शिवभक्ति को साधन वताते हैं । ४. व्यास और जैमिनि (१.२६) रे में महादेव तथा व्यास यहाँ अपने शिष्य जैमिनि से वाराणसी का माहात्म्य व॒ताते हैं और इस सन्दर्भ में महादेव त देवी के वोच मेरुपवत पर हुये संवाद को सुनाते हैं । को ) ' ः ५. व्यास तथा उनके सुमन्तु आदि शिष्य ५ हे, थक हज हे. दवेका शाताहय व्यास वाराणसी के शिवलिंगों और ती्थोंका दर्शन करते हैं तथा अपने शिष्यों से उ हार बताते हैं । ) जे युविष्ठिर क, क कल घन 09 ६. माकण्डय और हे ( १. है ३७; कि रे बच हि मार्कण्डय, प्रयाग २.३४-३७ महाभारत युद्ध में अपने संवन्धियों के वध से दुःखी हुये ह युधिष्ठर से मार्कण्डेय, प्रयाग का माहात्म्य वताते हैं । शँ




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