हनुमन्नाटक | Hanumannnatak

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Hanumannnatak by रामस्वरूप शर्मा - Ramswarup Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भाषाटीकासमेत-अंक १, (२५ ) रहे हैं, (इस कारण ऐश्वयेक्री तो आशाही नहीं और जय प्राप्त होनेकी भी आशा नहीं हैं, क्योंकि) में नई भुजवाढा तरुण हूँ और आप बूढ़े हैँ, तथा यह वीरोंका नियम ऐसा घोर है इसमे बूढे वाहक आदि पर प्रहार करना अनीति समझी जाती है, इस कारण बृढ़को जीतना पराजयही हैँ। आप जातिसे ब्राह्मण होनेके कारण हमारे पूजनीय है | पूजनीयका वध करने भी नहीं बनता ( इस प्रकार आपको जीतनेस कोई लाभ नहीं दीखता हूँ ) सो हे भगवन्‌ | क्रोधको त्याग प्रसन्न हुजिये, ( जिससे कि हमको आपकी हत्याका अपयश तन उठाना पड़े ) || ४७ | द्विः शर नासिसंधत्ते द्विः स्थापधति नाअतान । द्विदाति न चाथिभ्यो रामो द्विनामिमाषते ॥ ४८॥ _ रामचन्द्र बाण दो बार नहीं चढावा ( अथांत्‌ एक ही बाणसे शइका नाश करसकता हें ) आश्रित्तोंक्ो दो वार स्थापित नहीं करता ( अधात्‌ एकही बारमें अध्य करदेता हैँ ) याचकोंको दो बार नहीं दता ( अर्थात्‌ एकही बारमें निहाछू करदेता है ) ओर दो प्रकारकी बात नहीं कहता ( अथात्‌ जो एक बार कहता है, बराबर उसीका पालन करता है) |।४८॥ तदा सीतानाटयम । तच्चपरमाकषाति ताथ्कारावाकणंमाकणाविशाल- नेत्रा । सासूथमेक्षिष्ठ विदेहजासों कनन्‍्यां किमन्यां परिणेष्यत्तीलि ॥ ४९ ॥| ( उस समय सीवाजीकी द्याका वणन ) ताडका शाह श्रीरासचन्द्र जीके कान तक उत् धनुषको खेंचलेपर विशालनेत्रा इस सीताने इस कारण आवेश मे भरकर देखा कि कया अब यह किसी दूसरी कन्याके साथ विवाह करेंगे ( लात्पये यह हैं कि सीताजीने समझा कि यह स्ियॉपर निर्देयी होनेंके कारण पहिछे ताडकाका वध करचुके हैं सो कया शिवधनुष को चढाय मुझे वरकर भी अब जो परशुरामजीके धनुषको चढारहे हैं तो क्या अब किसी दूसरी कन्याके साथ विवाह करके मुझपर भी निरदयीपना दिखाबेंगे ॥ ४९ ॥




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