आह्रिकसार संक्षेप | Ahriksar Sankshep
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
188
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)जज
रलनुं पोताना हृदय विश्वे स्थापन करी देशबन्धुओना हृंदयमां
पण उप॑देशामृतद्वारा तेनुं स्थापन करी रह्मा छे; जेथी सदसह्िविक
शकती सचेतन तथा सबल थवा लागी. आजकाल विवेचक
शक्तीना जागृतीडुं काम पण घणे भागे लोकादरने पात्र थर्यु
जने सिद्ध थयु छे केः---
धर्म एवं हतो हन्ति धर्मों रक्षति रक्षितः।
जा प्रमाण दैवगति अनुकूल थतांज “ दोढसो बरसथी
पाश्चिमात्य संस्कृतिरूप राजयक्ष्मनो रोग छागेछो छतां पण,
० कालछोहये निरप्रथ्रिविंपुला च पृथ्वी | ”” कार निरवधि
छे; अने पृथ्वी विपुरु छे. त्तो कोईंपण मारो पक्षपात्ती उतन्न
थशे. ” घवा आश्ञावादना आधीन बनी केव प्राण घारण
करी रहेली; अनेक नाथ छतां अनाथ; तथा अनेऊ पुत्रों छतां
निषुत्ञिफ एवी प्राचीन आर्य्॑स्कृति छोक्रमान्य-महात्मा-
ओना जादेशायृतने छीथे हकवे हक्वे पुनरुज्जीवन मेह्थबवा
पात्र थई. तो आवी वखते “ प्राचीन संस्कृतीने सारी शक्ती
आपनार पण बोजारूप थई न पडे, एवो आचार विचार प्रति-
पादन करी व्यवहार तथा धर्मशाख्र आ बेड विषयनो सुकाबछों
करनार “ छघु पुस्तक ” कोमल अंतःकरणना नवयुवकोना
हायमां अचश्य आपवुं जोइए; फे जेयी तेमना आअंतःफरणमां
$ नवमीयन ” नो संचार थई, छेवटे श्रीमन््मद्रामारतमां कश्या
मुजब- ने जातु कामान्न भयान्न छोभादमे त्यजेजीवित-
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