पार्वती मंगल | Parvati Mangal
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
943 KB
कुल पष्ठ :
42
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about गोस्वामी तुलसीदास - Goswami Tulsidas
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पा्॑ती-संगल - १९
दुलहिन पावती जी हैं, शिव जी वर हैं, इस सम्बन्ध के साधक ( पक्का करने वाले )
ये सप्तर्षि हैं। अत! यह काम अवश्य ही सिद्ध होगा । ऐसी आकाश्-बाणी
हुई ॥ ८९॥
भयठ श्रकनि भानंद महेल मुनीसन्ह।
देहि सुलोचनि सगन कलस लिये सीसन्ह ॥ ६० ॥
आकाशवाणी छुन कर शिव जी तथा सप्तर्पियों को आनन्द प्राप्त हुआ | सिर पर
जल से भरे कहसे लिये हुए सुन्दर नेत्र वाली स्लियाँ समुन जनाती हैं || ९० ॥
सिव सो कहे दिन ठाउँ बहोरि मिलनु जहेँ ।
चले मुद्ति सुनिराज गये गिरिबर पहुँ॥ ६९ ॥
शिव जी से फिर मिलने के लिये दिन और स्थान वता कर जसन्न होते हुए प्रुनि-
वर हिपवान के पास गये ॥ ९१ ॥
,गिरिगेह गे श्रति नेह भादर पूजि पहुनाई करि।
धर बात घरनिं समेत कन्या भ्रानि सब आगे धरि ॥
सु्र पाह बात चलाइ सुदिनु सोधाइ गिरिहि सिखाइ के ।
ऋषि लाथ प्रातहि चले प्रमुदित ललित लगन धराह के ॥ ६२ ॥
सप्तर्पि हिमबान के घर गये । उन्होंने उन लोगों का अति आदर और रसनेह से
पूजन कर पहुनई की । श्र की सामग्री, ख्ली तथा कन्या समेत सब कुछ सप्तर्षियों के आगे
धर दिया | हिमवान के आदर सत्कार से सुखी हो कर ऋषियों ने विवाह की थात
चलायी ( विवाह सम्बन्ध तय हो जाने पर ) शुभ मुहूर्त निश्चित करके सुन्दर लगन धरा
कर सप्तर्पि प्रसन्न होते हुए प्रातःकाछ वहाँ से चल दिये ॥ ९२ ॥
विप्रइंद सन््मानि पूजि कुलंगुरु सुर ।
परेड निसानहिं घाड़, चाउ चहुँ दिसिपुर ॥ ६३ ॥
प्राह्मण मण्डडियों, कुलगुरु तथा देवताओं के सम्मान सहित हिमवान ने पूजा की ।
( विवाह सम्बन्ध की सूचना के लिए ) हैँके पर चोव पढ़ा नगर में चारों ओर उछाह
छा गया ॥ ९३ ॥
User Reviews
No Reviews | Add Yours...