सामाजिक कुरीतियाँ | Samajik Kuritiyan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
134
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्रम विभाग १३.
परिश्रम दहृम किसलिए करत दे, और जिन लोगों की सेवा का मार
हमने अपन ऊपर लिया है, उनकों हमने अपनी बैत्वानिक एवं कलछा--
सम्बधी प्रउृत्तियों का एक लच्ष्य-मात्र बना लिया है । हम अपने अदर
और भन-वहल्लाय के लिए उनका अध्ययन और उनकी गरांबी का
घणन करत है । हम इस याठ को टिलकूल मूल गय दै कि हमारा
कत्त-य यह नहीं क्लि उनका अध्ययन करें और उनकी दणा पर लम्बे-
शचौड़ लग लिखें, यक्कि यह है कि हम उनकी सेवा करें ।
अब समय द कि हम सचेत हों, और अपनी दुशा पर और मी
सूच्म-्टष्टि स विचार करें | हसारी दशा ठीक उन घमाधिकारियों के
समान हं,जा ईश्वर क साम्राज्य का कुचा तो अपन द्वाय में लिये हुए दे,
पर ज्ञा न सा खुद अन्दर घुसत है, और न दूसरों को घुसने टेते हू ।
इस अपन साइयों का जिन््द्रसी छो सवा रह दे और ठिसर पर सी
अपने आपको सच्चे, धमनिए,, दयालु, शिक्षित और पूर्ण पुरयवाकत
मलप्य समझते हैं ।
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