सामाजिक कुरीतियाँ | Samajik Kuritiyan

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Samajik Kuritiyan  by माधवप्रसाद मिश्र - Madhavprasad Mishra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्रम विभाग १३. परिश्रम दहृम किसलिए करत दे, और जिन लोगों की सेवा का मार हमने अपन ऊपर लिया है, उनकों हमने अपनी बैत्वानिक एवं कलछा-- सम्बधी प्रउृत्तियों का एक लच्ष्य-मात्र बना लिया है । हम अपने अदर और भन-वहल्लाय के लिए उनका अध्ययन और उनकी गरांबी का घणन करत है । हम इस याठ को टिलकूल मूल गय दै कि हमारा कत्त-य यह नहीं क्लि उनका अध्ययन करें और उनकी दणा पर लम्बे- शचौड़ लग लिखें, यक्कि यह है कि हम उनकी सेवा करें । अब समय द कि हम सचेत हों, और अपनी दुशा पर और मी सूच्म-्टष्टि स विचार करें | हसारी दशा ठीक उन घमाधिकारियों के समान हं,जा ईश्वर क साम्राज्य का कुचा तो अपन द्वाय में लिये हुए दे, पर ज्ञा न सा खुद अन्दर घुसत है, और न दूसरों को घुसने टेते हू । इस अपन साइयों का जिन्‍्द्रसी छो सवा रह दे और ठिसर पर सी अपने आपको सच्चे, धमनिए,, दयालु, शिक्षित और पूर्ण पुरयवाकत मलप्य समझते हैं ।




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