हिगुल प्रकरण व सिंदूर प्रकरण | Hingul Prakaran Sindur Prakaran

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Hingul Prakaran Sindur Prakaran  by विनयसागर उपाध्यायजी - Vinaysagar upadhyayji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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17 “माया प्रकरणुट आप कप मियां मायोत्पनादविश्वासा-न्मुखामृतो5पि मानुष परेसद्मप्रवेश चं, नाप्नुयात्‌ श्वानवृत्सदा ॥१॥ प्र4-मुझ से मीठा वचन बोलने वाला ऐसा मनुष्य कपठ से उत्तप्न हुए प्रविष्यास से हमेशा कुत्ते के समान दूसरे के घर में प्रवेश पा नही मवता 1 १ ॥ - , न क्त |; कि बच्चना पठित शास्त्र, तदनरथाय केवलेमू । आओ सन ज रत शत १ श््‌ हरिभद्वस्य शिप्याणां, फल किमुत न भ्रूतम्‌ ॥शा। 1 ग्रय--गपट में पढा हुया शास्त्र केवल भ्रनथ ही करेगा परमावि उससे थी हरिभद्वाथाय महाराज के शिप्या को जो फल मिला बह प्रापने शास्था मे दंदु। होगा ॥ ३ ॥॥ मायथा यत्तयस्तप्त- महारलेन साघुना । स्थोवेदों द्यजितस्तेना भुक्तो महलीभवेच स' ॥3॥ ६ * पधष--महायल भाघु ने ली जद बषट से तपस्या थो थी उससे उसको रतीबेद उपाजन विया भौर यह स्त्रोवेद उमयो थी भत्तीयाय विनेश्वर थे भव में भागा पढ़ा ॥ 8 ॥ दामीपुच् 'पुर॒त” फपिसदत्ति मरेबंधमानो5पि दार, एीाययतओ घधि। त्वी पटुतरक्षा तैनिद्यमान समतान्‌ ।




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