महाबन्धो भाग ८ | Mahabandho Bhaag 8

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Mahabandho Bhaag 8 by पंडित हीरालाल जैन - Pandit Heeralal Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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योगद्वाणपरूबणा ध्‌ योगद्टाणपरूवणा ८, योगटद्ठाणपरूबणदाए तत्य इसाणि दस अणियोगदाराणि-अविभागपलिच्छेद- परुवणा वरगणापरूचणा फदयपरूतवणा अंतरपरूवणा ठाणपरूवणा अ्॑तरोवणिधा परंपरोवणिधा समयपरूवणा वड्िपरूवणा अप्पातरहुगे त्ति। ९, अविभागपलिच्छेदपरूणदाए एकमेकम्हि जीवपदेसे केवडिया अविभाग- पलिच्छेदा १ असंखेजा लोगा अविधागपलिच्छेदा। एवडिया अविभागपलिच्छेदा। १०, वर्गणपरूवणदाए असंखेज्ञा लोगा योगअविभागपलिच्छेदा एया वण्यणा भवंदि! | एवं असंखेजञाओ वग्गणाओ सेडोए असंखेजदिभागमेच्तीओ | योगस्थानप्ररूपणा ८, योगस्थानप्रहृपणासे ये दस अज्ुयोगह्ारश्ञातव्य हैं--अविभागप्रतिच्छेद्मरूपणा, वर्गेणाप्ररूपणा, स्पधेकप्ररूपणा; अन्तरप्ररूपणा, स्थावप्ररपणा, अनन्तरोपनिधा, परन्परोपनिधा, ससयप्रहूपणा, इद्धिम्ररूपणा और अल्पबहुत्त । ९्‌ अविभागप्रतिच्छेद्प्ररपणामें जीवके एक एक ग्देशसें कितले अविभागशतिच्छेद होते हैं ९ असंस्यात लोकप्रसाण अविसागग्रतिच्छेद होते हैं । इतने अविभाग प्रतिच्छेद होते हैं। पिशेषार्थ--बुद्धिवारा शक्तिका छेद करने पर सबसे जघन्य शक्त्यंशकी दद्धिका नाम प्रतिच्छेद संज्ञा हे। यह इद्धि अविभाज्य होती है, अतः इसे अविभागप्रतिच्छेद कहते हैं) मकृतमें चोगशक्ति जिचक्षित है। जीवके प्रत्येक प्रदेशमें इस योगशक्तिके देखने पर बह असंज्यात लोकप्रराण अतिच्छेदोंसे चुक्त योगशक्तिको छिये हुये होता है। यद्यपि यह योगशक्ति किसी जीवप्रदेशम जघन्व होती है और किसी जीवप्रदेशमे उत्कषट, पर अविभागप्रतिच्छेदोकी अपेक्षा विचार करने पर वह असंख्यात लोकप्रसाण अविभागप्रतिच्छेदोंको लिये हुए होकर भी जघन्वसे उत्कृष्टमे असंख्यातगुणे अविभायप्रतिच्छेइ होते हैं। उद्धाहरणार्थ--एक शुद्ध बस्ध लीजिये | ड्सके किसी एक अवयवसे कम शुछता होती है और किसीमें अधिक । जिस प्रकार उस बलमें शुद्भणुणका तारतन्‍्य दिखाई देता है उसो प्रकार जीबके प्रदेशोंसे भी योगशक्तिका तारतन्य दिखाई देता है| इससे विद्त होता है. कि इस तारतस्यक्ता कोई कारण होना चाहिए । चहाँ तारतसन्थक्षा जो भी कारण है डसीका नाम अविभागप्रतिच्छेद है। इन अविभागप्रतिच्छेदोंके ऋमसे वर्गणा केसे उत्पन्न होती है आगे इसो वातका विचार किया जाता है। १०. चर्गेणाप्ररूपणाकी अपेक्षा योयके असंख्याव छोकप्रसाण अविभागप्रतिच्छेद सिलकर एक वर्गणा होती है। इस अकार जसंख्यात चर्गणाएँ दोतो हैं, क्योंकि ये जगश्रेणिके असंख्यातवे भागप्रसाण होती हैं। * ० ई हम अत्वेक अदेशगत योगके अविभाषततिच्छेशेका ८ लय हा ् 'विशेषाथ---पहले हम अस्वेक अरदेशगत योगके ग्रग्नतिच्छेडोका विचार कर आये हैं। उत्तरोत्तर इद्धिहप ये अविभागप्रतिच्छेद सभी जीव अदेशोसे उपलब्ध होते हैं। कारण कि ७ योग सब भरदेझोमें समान रूपसे नहीं उपलब्ध होता। उद्याहरणाथे दाहिने हाथसे वजन ज्ठाने पर इस हायके प्रदेशोमे जितदा जधिक्र खिचाव दिखाई देता हे उतना खिंचाव कंधेके पासके अदेशोर्स नहीं दिखाई देता। तथा कंषेके प्रदेशोसे जितना खिचाव दिखाई देता है उतना खिंचाव शरीरके अन्य अवयवोके प्रदेशों नहीं प्रतोत होता । इसलिये सच जीवप्रदेशोंमें योगशक्तिको _दोनाधिझताकषे कारण उसका तारतन्य किस ऋमसे उपलब्ध होता है. यह विचार करना पड़ता १. प्रत्योः सदन्ति इति पाठः ।




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