नीति शृंगार वैराग्य शतकत्रयम भाषा टीका सहित | Neeti Shringar Vairagy Shatakatryam Bhasha Teeka Sahit
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
196
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about रामचन्द्र पाठक - Ramachandra Pathak
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)नीमिशतकम् । २१ |
दोम॑न्यान्तपतिविनश्यतियतिः संगात्सुतो ला |
नाडिग्रोष्नध्ययनात्कुल' कुतनयाच्छील' खलो !
पासनात्। हीम॑द्यादनवेक्षणादपि कृषिः स्नेहः
प्रवासाश्रयान्मेत्री चात्रणयात्ससद्धिरनयात्यागा |
अमादाद्धनम् . ४२ |
: हुए मंत्रियों की सलाहसे राजा नष्ट हो जाते हैं, संग- [
तिसे तपरवी, दुल्वारसे पुत्र, विद्या न पढनेसे ब्राह्मण, कुपूत
से कुल, दुएकी सेवा से शील, मद्य पीनेसे लज्जा, विना |
देखे भाले खेती, परदेशमं रहने से स्नेह, अन्याय से मैत्री,
अनीतिसे इृद्धि, ओर प्रधाद पूषेक (असावधानतासे )व्यय |
करने से धनका नाश होता है ॥ ४२ ॥ ।
दानं॑ भोगो नाशस्तिखों गतयों भवन्ति |
विच.य | यो न ददातिं न झुड्ते तस्व तृतीया |
' | गृतिभवति 1 2३ 7 '
द्वान, भोग और नाश वही धनकी तीन गति हैं | जो ।
न द्वान देता है और न धनकों अपने-उपभोगयें, लाता है
उसके धन की नाशरूपी तीसरी गति होती है | ७३ ॥|
1. मणिशाणोल्वीढः समरविजयी हेतिनिहतो |
| मदक्षीणो नागः शरदि सरितिः श्यानपुलिनाः । |
User Reviews
No Reviews | Add Yours...