नीति शृंगार वैराग्य शतकत्रयम भाषा टीका सहित | Neeti Shringar Vairagy Shatakatryam Bhasha Teeka Sahit

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Neeti Shringar Vairagy Shatakatryam Bhasha Teeka Sahit by रामचन्द्र पाठक - Ramachandra Pathak

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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नीमिशतकम्‌ । २१ | दोम॑न्यान्तपतिविनश्यतियतिः संगात्सुतो ला | नाडिग्रोष्नध्ययनात्कुल' कुतनयाच्छील' खलो ! पासनात्‌। हीम॑द्यादनवेक्षणादपि कृषिः स्नेहः प्रवासाश्रयान्मेत्री चात्रणयात्ससद्धिरनयात्यागा | अमादाद्धनम्‌ . ४२ | : हुए मंत्रियों की सलाहसे राजा नष्ट हो जाते हैं, संग- [ तिसे तपरवी, दुल्वारसे पुत्र, विद्या न पढनेसे ब्राह्मण, कुपूत से कुल, दुएकी सेवा से शील, मद्य पीनेसे लज्जा, विना | देखे भाले खेती, परदेशमं रहने से स्नेह, अन्याय से मैत्री, अनीतिसे इृद्धि, ओर प्रधाद पूषेक (असावधानतासे )व्यय | करने से धनका नाश होता है ॥ ४२ ॥ । दानं॑ भोगो नाशस्तिखों गतयों भवन्ति | विच.य | यो न ददातिं न झुड्ते तस्व तृतीया | ' | गृतिभवति 1 2३ 7 ' द्वान, भोग और नाश वही धनकी तीन गति हैं | जो । न द्वान देता है और न धनकों अपने-उपभोगयें, लाता है उसके धन की नाशरूपी तीसरी गति होती है | ७३ ॥| 1. मणिशाणोल्वीढः समरविजयी हेतिनिहतो | | मदक्षीणो नागः शरदि सरितिः श्यानपुलिनाः । |




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