विक्रमोर्वशीयम् | Vikramorvasiyam
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
298
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)योड्यूड ] प्रकाशदीकोपेतम् | ६६
उवंशी--अन्नावयो: समविभागा प्रीति: | ( एत्य णो सूमविभाआ पोदी )
राजा-बयरय अह्लल्वीस्वेदेन दृष्येरन्नज़्राणि। घायतामय॑ प्रियायाः
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विदूषक---( शहीत्वा ) किमिदा्ी तत्रभवत्युवेशी भवतो सनोरथानां
मं द्शेयित्वा फले विसंवद्ति। ( कि दार्णि तत्तमोदी उग्वसो भवदो मणो-
| कुसुम दंसिश्र फले विसंवददि )
'तणाया भाननम् मुखभिव भषति जायते। पत्रम्तिदं वाचयतो मम सुखेन
ख मिलित्मिव जायते, जनेन पत्रेण तद्ध्द्यमिव निवेद्यता मन्ये तन्मुखमिव
भ्रुखस्य सन्निधावानीयोपस्थाप्यत इति भावः | माधथत्याभ्यामिति मदिरि, मदिरे
1 यस्यास्तस्याः । यद्वा मदिरा तत्सज्ञा दृश्टिय॑स्पास्तस्या ह॒त्यर्थ:। मद्राचष्टि-
ग्मादिभरते यथा--भाघूर्णमानमध्या या क्षामा चाश्विततारका। दृष्टिवकसिता-
| मदिरा तरुणे मदे! ॥ यद्वा मदिराभिधमीणण यस्पास्तस्या।। तदुक्त सड्ीच-
कायाम्--'स्निग्धार्धमुकुछाकान्ता लग्मिता मद्रि तथा । पदञ्नेचान्न प्रतिज्ञाताः
दित्येन दृष्टयः ॥ सौष्ठपेनापरित्यक्ता स्मेरापाव्टमनोददरा । वेपमानान्तराइष्टि-
रा परिकीत्तिता ॥? भ्न्न तदुदाहरणरूपवचनश्रवणस्य तन्मुखेन स्वस्थ सुख्स्य
ग्ररूपतयोस्प्रेच्रणादुष्परेक्चाउलद्भारर । चसन्ततिछ॒क बृत्तम्। तदरूत्तणमन्यम्रो-
,। ध्नत्न विशेषवचनात् पुप्पं नाम सन्ध्यक्ष्मुक्तम । तदुक्त साहिस्यदुर्पणे--पुष्प
पवर्चन मतम्र! इति ॥ १४ ॥
समविभागा + तुस्यमात्रा, यावती वृद्धिर्मम प्रेमणि त्ावस्येव तस्या जपि प्रेमणि,
श्यप्रमाणावावामिति नेकाड्भरकप्रणयपरायणतयोपद्सनीयो 5 मिति राजाशयः 1
भऊुलीस्वेदेन 5 घात्विकभावाचिर्भा वितवर्मजलेन । दृष्येरन् ८ विकृृतिसमधि-
रन्। प्रियाया दस्त. ८ तद्धस्तलिखितो लेखः ।
मनोरधाना ऊुसुमम्र् 5 मदनलेखप्रेपपरप मनोरयानां साफर्पस्य सूचक ।
चदृति रू विपरीतायते । योव॑ंशी स्वयमीरशं मद्नलेस विसुजति सा भवन्त-
उर्वशी--यहाँ तक हम दोनोंका स्नेह समान है ।
राज़ा-प्रियमित्र, अंगुलीफे पसीनेसे अक्षर पुत जायेंगें, प्रियाक्रे इस
को रखो।
विदूषक--( लेकर ) उर्वेशीने जब आपके मनोरयमें फूल लगा दिये तब
फलके समयमें हृधर उधर नहों फरना चाहिये ।
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