सामयिक पाठ | Samayik Path

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ब्‌ स्वंसाघारणकी दृष्टिमे ये जैन दो संख्यामें विभक्त है एक दिगम्बर दुसरे श्वेताम्बर, इनमेंसे ऐतिहासिक दृष्टिसे यदि विचार किया जाय तो मूलकता और असलिय एक दिगम्बर सप्रदायमें है ' इस सप्रदायमें जो मूल सघता हे वह इसी उद्देशयकी सूचक ह। भद्गवाहू श्रुतकेवली तथा उनके अनन्य भक्त मौवोय प्रथम चद्गगुप्त सप्तादके अन्तकालके कुछ समय वाद शधिल्य साधुवर्गके द्वारा श्षेताम्बर सप्रदायिकी उत्पत्ति हुईं । उसमें उस धर्मके मुआफिक साधुचयों सरल होनेसे वैसे (श्वेत पटधारी ) साधु आज कछ भी देसे जाते द। उनमें मूल दिगम्बर सम्प्रदायसे अलग होनेके वाद अपनी स्मति तथा घारणाके मुआफिक शाज्न तथा प्रवतत्तियोंकी रचना धृत्ति जो कुछ देखनेमें आती दे उसमे दिगम्बर संग्रदायिसे बहुत फर्क पाया जाता है। परंतु उनके मुआफिक जो आवश्यकादि कर्तव्य तथा और जो क्रिया हैं उनकी प्रश्ृति जैसी पाई जाती है वेसी सर्व साधारणकी अपेक्षा दिगम्वर सप्रदायमें देखनेमें नहीं आती उसका कारण पदल्थकी श्रधानता हैं । इस कलिकालके दोप दिगम्बरीय साध्ठु सख्या वहुतही कम इनी गिनी नजर आती है तथा प्रतिमाधारियोंकी सख्या भी चहुत कम है परतु जो कुछ सख्या है उस सबमें अपने पदस्थके मुआफिक्र आवश्यक क्रियाओंका पालन पूर्ण रीतिसे होता है। तथा दूसरे पाल्िक क्रावक्र भी अपनी शक्तिके मुआफिक करते हैं। परंतु सामायिकादि पड आवश्यकका प्रधान रीतिसे आचरण जैसा दि. मुनिवग तथा नैष्ठिक भ्रावक वर्गमें है वैसा पाक्षिकर्में तथा नैप्ठिकके प्रथम द्वितीय पदमें नहीं है । परंतु इसका यह मतलूव नहों है कि वहा यह आचरणही नहीं | आचरण अवइय है परंतु प्रधान गौणका भेद अवइय है। नेष्ठिक भ्रावकके तृतीय दर्जेंसे लेकर मुनिपरयत पदस्थ मुआफिक पढावश्यककी प्रधानता है और उससे नीचे दर्जेमें गौणता है । इसी तरह देवेपूजा, गुरु---उपासना, स्वाध्याय, संयम, तप, दान, ये छह कर्म गृहस्थके साधारण रीतिसे वर्णन किये हैं परतु इनमें भी शह- स्‍्थके लिये देवपूजा, शुरु उपासना तथा दान इनपर कुछ जादा आवश्यकता उनके पदके मुआफिक है ओऔरोंमें तथा इनमें पदके मुआफिक सर्वकी प्रधानतासे योजना है । इसी तरह सामायिकादिमें भी नौचेसे छेकर अपने पदके मुआफिक उत्कषता है। न कि नौचे दर्जेमें तो अभाव हो और ऊपर विघानता हो ऐसा नहीं। बस्लज जन लकमन न न 1 15 न सपा ++ “०८ था 1253 अंक अर स्वाध्याय संयम तपः दान चेद्‌ ग्रहस्थाना पद कर्माणि 1




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