मुण्डक-उपनिषद और माण्डूक्य उपनिषद | Mundak Upanishad aur Mandukya Upanishad

मुण्डक-उपनिषद और माण्डूक्य उपनिषद by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मुण्डक २खं १ में १० श्द्र के मन्त्र ) दीक्षाएं (यज्ञ के आरम्भ के नियम, मोती बन्घन आदि ) सारे यज्ञ ( अधिद्दोब्रादि ) और क्रतु ( सोम याग ) ओर दक्षिणाएं (जो क्रात्विजों को दाजाती हैं ) चरस४ यश; करने वाला और लोक (जो यज्ञ का फल हें), जिन पर चन्द्र चमकता है, आर जिन पर सय्य (चमकता हैं) ! ॥ ७ ॥ उससे चहुत कार के देवता भी उत्पन्न हुए हैं, साध्य ( देवता), मजुष्व, पशु, पथी/प्राण अपान (साँस छोड़ना और खींचना?, चावल और जी ( इवि के छिये), सप, श्रद्धा, सरय,न्नह्लचस्यं और (यज्ञ करने की) चिधि॥७ सप्त प्राणाः प्रभवन्ति तस्मात्‌ सपार्चिप: समिधः सप्त दोमा:। सप्त इमे ठोका येड चर्रन्ति आणा+ उहाशया निद्िता। सप्त सप्त ॥८॥। अतः ससुद्द गिरयरच सर्व उस्मात्‌ स्यन्दन्ते सिन्घवः सर्वेरूपाः । अतश्च स्व न कि. हि ोषघयो रसश्च येनेष ग््तैस्तिप्ठते हन्तरात्मा ॥९॥ पुरुष एवेद विश्वे कर्म तपो ब्रह्म परास्तस्‌ । एतद यो चेद निदितं उद्दायां सोडविद्यायन्थि विकिरती ह सोम्य 8 सात प्राण ( इन्द्रिय ? भी उससे उत्पन्न दोते हैं, सात ज्वालाएं ( इन्द्ियों का अपने र विपयों का प्रकाश करना) सात | इ यश के करने में बहाल का नियम है, इसलिये काल भी यश च्वा झड़ है ॥ 1 केवल कर्मी दृध्चिंग मार्ग से उन लोकों सो जाते हैं जहां घ्वस्द चमकता है | भीर कर्स्म सौर उपासना वाले उत्तर मार्ग से उन लोकों को, जद्दां खूय्ये चमकता है ॥ यू तप, सत्य और घ्रह्मचर्य्य, ये यज्ञ के दिनों में घ्त से तौर पर: पालन किये जाते हैं और ्द्धा सारे यों का जज दे ॥ $ सिर में रृने चाे सात इन्द्रिय, दो आंख, दी कान, दो नासिका सौर वायु ॥ -




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