अपने अपने कारावास | Apane Apane Karawas

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Apane Apane Karawas by सरोज वशिष्ठ - Saroj Vashishth

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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स्थिति को नजरअन्दाज करने का अभिनय करते हुए अपना चेहरा डूसरी ओर फेर लिया था। सुजाता के नन्‍हँ-नन्‍्हे हाथ मेरो दागो को अपनी गिरफंत मे घेर रहे थे। मैंने स्व्य को ब्ुठलाना चाहा-नयू ही दरारत कर रही है, बच्ची है। पर नही वह तो अपने लिए एक सुरक्षित जगह दूढ रही थी । साथ-साथ रहने का सुख तलाश रही थी। एक ऐसा घर इढ़ रही थी, जिसमे मा-बाप दोनों हो । फिर मैंने स्वय॑ को सम- भाया । यह केवल मेरी कल्पना है, इत्ती-सी बच्ची को क्या मालूम घर क्‍या होता है ? दूटा हुआ या फिर जुडा हुआ। “अच्छा चलो, तुम मेरे साथ चलो,” उसका एक पैर नीचे जाने वाली पहली सीढी पर पहुच गया था, “पर चलने से पहले एक वात बताओ ? ! अब सुजाता की आखसों में सम्पूर्ण आशा भलक उठी थी। तुम तो अपनी मी को याद करके नहीं रोओगी | पर तुम्हारी मी का क्या होगा ? बह तो तुम्हें याद कर के बहुत रोएगी । “आई डोस्ट केयर ।* एकाएक स्थिति ने एक भयकर मोड ले लिया था। करुणा की आखों में आतक छा गया था, पीड़ा भी, वेवसी भी । व्यस्त नृत्यागना थी वह । राजधानी की नई प्रतिभा । एक नया चेहरा । नृत्य ही उसकी जिन्दगी थी, उसकी महत्त्वाकाक्षा थी । उसमें निहित उसका अह, उसके खालीपन को भरने का माध्यम, नृत्य की गहराइयो में डूबी हुई करुणा । इस सबके बावजूद मैं जानती थी कि करुणा पूरे मनोयोग से सुजातां की दखरेख अच्छी तरह से कर रही थी। जहा कही भी जात्नी सुजातां साथ ही रहती ! पर जाहिर था कि सुजाता न तो सन्तुष्ट थी नहीं झुरक्षित 1 एक अनाम भय से ग्रस्त थी वह । घायद करुणा उसे डाटने की तैयारी कर रही थी | या फिर उसे धसीटकर अपने साथ ऊपर ले जाने के बारे में सोच रही थी । मेरे अन्दर भी अग्नि दहक रही थी । नही, सुजाता के लिए नहीं, उसके माता-पिता के लिए । क्‍यों श्ञादी करते है लोग ? अगर करते हैं तो क्यो नहीं निभा पाते ? कितने सशोधन किए गए है संविधान में । नये कानून वनाए गए हैं। क्यो नहीं किसी को सूका कि कोई ऐसा काजून बनाया जाए कि अगर शादी कर ही लो है और अगर बच्चे पैदा आखिरी दइलोल / 23




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