नवदर्शन-संग्रह | Navdarshan Sangrah

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : नवदर्शन-संग्रह - Navdarshan Sangrah

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about अज्ञात - Unknown

Add Infomation AboutUnknown

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
'ार्वोक-द्न ऊ बुद्धि और पुरुपार्थ से हीव लोगों की जीविका बनाई है ॥ २ प ज्योतिछ्टोम में मारा हुआ पथ यांदि स्वग को जाता है, तो यजमान अपने पिता को ही उसमें क्यों नहीं मार देता ॥ दे ॥ मरे हुए माणियों का श्राद्ध यदि उनके लिये तृश्तिकारक हो,तो परदेश जाने वालों के लिये तोका तथ्यार करना व्यर्थ है ॥ ४ ॥ यदि स्वर्म में स्यित पितर यहां दान से दस दोजातें हैं, तो महल पर बैठे हुओं के लिये यहां क्यों नहीं देते हो ॥५॥ सो जब तक जीवे, छुखी जीवे, कण लेकर भी घी पीवे, भस्म हुए देह का फिर आना कहां ॥ ८ ॥ यदि यह देह से निकलकर परलोक को जाए, तो फिर बह बन्धुओं के सह से घबराया हुआ वापिस क्यों नहीं आजाताहे ॥७90 इसलिये मरे हुए के लिये जेतकर्म करना घाह्मणों ने अपने जीवन का उपाय बनाया है, इसके सिवाय और कुछ नहीं है ॥ ८ ॥ यहाँ जी, कोई राजा कोई रंक है, कोई था कोई नीरोग है; असवयो कोई दुर्बल कोई वलवान. है, कोई घुद्धिदीन कया कोई बुद्धिमान: है, और कोई पथ कोई मलुष्य बयान की है,इसादि व्िचित्रतादै,ड्समें भाणियों के अदृष् कारण नहीं, किन्वु यह सारी विचिन्नता स्वभाव का है-“ अभिरुष्णो जले चीते शीतस्परद्स्तथा , 5निलगकेनेदं चित्रित तस्मात्‌ स्व भावात्तबत्यवस्थितिश न अभि गर्म है, जल ठण्डा है, और वायु झीतस्पदीवाछा है, यह किसने विचित्रता की है? (किसी ने नहीं )इसलिये स्वभाव से इनकी यदद व्यवस्था है। जब देह ही आत्मा है, और उसके लिये यहीं ठोक है । तो यहां का सुख ही दमारा उद्देश्य होना चाहिये 1 (९ ९ पैरिक सखं . इसल्यि-“ यावज्जीव॑ सुखं जीवेन्ना- को परूषाथे है सस्पमसीरमायर हलार *। सस्मी भरूतस्य देह-




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now