दर्शन विशुद्धि | Darshan Vishuddhi

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Darshan Vishuddhi  by भुवनविजय जी महाराज - Bhuvanavijay Ji Maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दर्सेन विशुद्धि रे दर्शन से ही उनका सम्यक्त्व परिणाम पुन जागृत हुआ था और ग्राखिर वे प्रबत्नपूर्पफ़ आर्यदेश में ण्टू वे और दीक्षा अगीकार कर्‌ ली तथा सभी ऋर्मो का क्षय करके अन्त मे मोक्ष में गये । यह उल्तेस सूयगठाव सूत की नियुक्ति मे पूज्य श्रद्ववाह स्वामी ने करीबन्‌ तेडस सौ वर्ष पहले किया हुआ है। पूज्य भद्ववाह स्वामी ने न तो रणोहरण भेजने का उल्तेस किया हे और न मुहपत्ति भेजने का सिर्फ जिन प्रतिमा भेजने का साफ साफ झब्दों मे उल्लेख किया है। वह उल्लेस नीचे के ब्लोक मे ह -- “पीतीय दोण्ह हुझो, पुृन््याणमभयस्स पत्थवे खोड | तेणावि सम्मदिद्ठि ति होज्ज पडिमा रहे मिगया ॥” आदर कुमार और ग्रभयकुमार के वीच मंत्री सम्बन्य होने के बाद अभपकुमार ने आदर कुमार को प्रतिवोध करने के लिये भग- बान क्पभदेव ऊी प्रतिमा मेजी हैं उस वात का इस गाया में स्पष्ट उल्लेव है मगर मुहपक्ति अथवा रजौहरण मेजने का किसी प्राचीन गाया में उल्नेद नही गाया है वेसे ही दक्षतंकालिक सूद के रचयिता संय्यभव स्वामी को भी जिन प्रतिमा के दर्यन से ही प्रतियोप हुआ था। दघवेकालिक सूधकी निशुक्ति में पूज्य भद्ववाहु स्वामी ने स्पष्ट झत्दोंमे लिया है --




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