ओ अप्रस्तुत मन | O Aprastut Man

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O Aprastut Man by भारतभूषण अग्रवाल - Bharatbhushan Agrawal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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निर्मल तुम्हारा रूप ज्यों गयन में जय उठा कोई नया तारा ज्यों हृदय में एट, फैली सरस कोई नई जल-पारा पैग में अपने इब्ोती थुयों के महू का किनारा आर / वह नर रूपए, पायक् ता असरड, सतेज, यह पिर्मल दुग्हारा रूप नमित गे जैते कि मेरे शीश पर छाई प्रकमित पलों मे नभ की सलोनी धूप /




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