अथ वेडाङ्गप्रकाश भाग - 7 | Ath Vedangaprakash Bhag - 7

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Ath Vedangaprakash Bhag - 7  by स्वामी दयानन्द सरस्वती - Swami Dayananda Saraswati

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अथ्‌ भूमिका सददय भिषु लिड्जेड़ सर्वासु च विभकिएु। घचनेपु च सर्चेंु यक्न व्येति तदव्ययम्‌॥ णो धन्दुम्बरूप तीनों ल्फ्रि, सातों विमक्तियों और इनके पुकवाचन, दिवचन, पहुवपन ( सात विमक्तियों के तीन २ के द्विसाव से सात तिये इक्ीस बचनों ) में एक से बने रहें अर्थात्‌ नैसा उनका स्वरूप प्रथम दो शैसा हो मष्य और अन्त में मो यना रहे, मिनमें कोई विक्धर न हो, उनको अश्यय दारद कद्दते हैं। हनका पाठ अकारादि क्रम से इस अन्य में लिखा है। ये क्षम्पप शब्द पद, वाक्य और क्रिया के साथ सम्बन्ध रखते हैं, और कही कहीं कोई क्छेई कष्यय भरहूति के ऊर्य की विल्क्षण करके दिशणा देवा है | मैये भर, परण, दि, इत्यादि | “मवः? किसी का मास वा संसार और “प्रमव:? रत्पत्ति, “जय:ः” ह्लीत भर “पराजय:”? हार, ल्मू:” जो होता है और विमः” ब्यापक इत्यादि। और “व, था” भादि शब्द अहृति के अर्थ को बदलते नहीं, किन्शु सहायफ होते हैं। जिसछिसे बेदादि शाप्ों में इसके प्रयोग भाते हैं, इसलिये इनका भर्म दिदित करना कराना सबको टवित है, क्योंकि विषा अरधक्षाम के फुछ भी छाम महों हों सकता | इस प्रस्थ में हीन भकार का ऋ़म रकवा राया है । अपम सूछ अग्यय, दूसरे कोष्ठ में उनका अये और तीसरे फोए में अम्यर्थो के उदाइरण रख दिपेह!। इस प्रत्य को संप्टरत में घनाने का थदी प्रपोजन है कि इस पुस्तक के पूर्य, ससिधि-विषय थ्ादि ध्स्थों को क्रमशः ह्लो छोग परदेंगे, उनड्ो संस्कृत का समसना कुछ कठिन नहीं पदेगा भौर संसहत बोलने लिखने में मी उपयोगी होगा । इति भूमिका ३, भव का भाझर गइत देने से नोष्ठो को इटा कर दौनों कोशों के पाझ कौन विमिसन टापं में कर दिये ६ $ युब भी 4




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