आदर्श चरितम् | Aadarsh Charitam

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रथम परिच्छेद बट व््व््व्वजल्ल लच्ल्स्नच् न खप् खप ववच आज जे अलजल लत अत लत «७3 सद्धमेंसोधार्मिकपोपणेन, मुझुक्षुवगंस्य सुतोपणेन । दीनादिदाने; स्वजनादिमाने, स्वसम्पदी य; सफलीचकार भावार्थ - श्रीमाम्‌ सेठ टेकचन्दजी सा० ने अपनी प्राप्त लक्ष्मी वे अपने स्वधर्सी भाइयों की रक्षा में, दीन-हीन व्यक्तियों को दान देने में, कुटुम्त्र के सम्मानादि कार्यों में तथा मुनिराजों को निर्बेच आहारादि प्रदान करने में व्यय करके उसका सदुपयोग किया था ॥१श। गेन्दीवाइ वभूव तस्य गृहिणी शीलत्रतद्योतिनी, तस्याः कुन्तिसुशुक्तिमोक्तिकसुता। संदयोतयाअवक्रिरे । चुत्नीलाल उदारचित्तपुरुष। श्रीखूबचन्द्राभिधो- भोगीदास उदग्रचुद्धलसितो दाडीमचनद्गस्तथा ॥१५॥ भावषाथे-श्रीमान सेठ टेकचन्दली की पतिनि का शुस नाम गेंदी- बाई था | जो परम सदाचारिणी ओर पतिम्रता थी | उसने अपनी पवित्र कुक्षि से, कुशाम्र वुद्धि बाले चार पुत्र-रत्नों को जन्म दिया जिनके शुभ नाम क्रमश: चुन्नीलाल, खूब॒ुचन्द्र, भोगीदास और दाड़िसिचंद्र रक्‍ले गये ॥१श। मोती रत्नाख्यके कन्ये, गेन्दी सा सोष्टसद्गुरो पट गन्‍्तानयुतश्रेष्टोडनेष्ठ थमेस्वभावतः) ॥१७॥॥ सावाथ--इन चार पुत्रों के आतरिक्त श्रीमती गेंदीयाई की चुदक्षि से दो कन्याएँ भी उत्पन्न हुई' । जिनका शुभ नाम ऋमश: सोती- चाई तथा रत्नवाई रक्खा गया। इस प्रकार चार पुत्र और दो अल हाकिओ.. के: हे असन्सक:




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