अनदेखी | Andekhi
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
167
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)आनंद बहुत नाराज हुआ 1 “यह सव इसलिए कहते हो-क्कि तुमने दुनिया
देखी नहीं है। अपने मामा के बहुत सुरक्षित सुसज्जित स्वर्ग की सीमा में तुम रहती
हो, और तुम नहीं, तुम्हारी दुटपुंजिया धारणाएं बोच रही हैं।” पेटी दुर्जुना
को बह 'दुटपुंजिया' रहता था।
तो यह ते हुआ कि एक दिन बंबई की मुग्गी-मोंपड़ी वाले इलाके में हम दोनों
जायेंगे। आनंद अपने एक दोस्त, उन लोगों में काम करने वाले एक कम्युनिस्ट काम-
रेड भिगारे को ले आया । मेरी समझ में उन लीगो की भ्ापा कम आती थी और
बसी भी वस्ती सलम या “गलिच्छ” बस्ती में रहनेवालों की अपनी एक अलग उप-
भाषा होती है। उसे 'चोर भाषा' भी कहते हैं ।
हम लोग सवेरे अपने रहने के स्थान से, अपने-अपने बगल-मोले लेंकरविजली
की गाड़ी से घारादी के पास उस बस्ती में पहुचे ।
बंबई अजीब संमिश्र जन-सागर है। वहां भारत और भारत के बाहर के भी
+-नेपाल, वंगलादेश, श्रीलंका, तिब्वत, वर्मा आदि-आदि स्थानों के भी--लौगों
को आकपित करती है। मोहमयी बंबई नगरी मे सब अपना 'नसीद कमाने” आते
हैं। अब उन लोगों में से सबसे पहले एक नेपाली लड़की से मेंट हुई। एक मुस्लिम
बुटिया उसे खीचकर ले आयी थी । छोठी सी 'खोली” (कोठरी) में ये दोनो रहते
थे। पास मे ही गटर बहती थी । पानी का वेहद कष्ट था | पर जब हम 10-11
बजे वहां पहुंचे तो उम्त वस्ती के पुरुष प्रायः वाहर कही चले गए थे। हमने उस
बुढिया से बात करने की कोशिश की । दो नौजवानों से वह अकेले में बात करती
पर मुझे साथ में देखकर सकपकाई । यह क्यो आई है ? कही पुलिसबाली तो नही
है ? आजकल पता नही किस-किम भेस में ये आ जाते हैं । जब हमने बताया कि
“नही, डरने की बात नही है। हम अखवार वाल हैं, तुम्हारे दुख दर्द पर लिखेंगे।””
तो भी उसे भरोसा नही हुआ । ुढ़िया वोली--''ऐमे बहुत कैमरा लटकाये आते हैं 1
पता नहीं क्या-क्या मिर्च मसाला लगाकर लिख डालते हैँ। सब गलत है। मुभक्
वैपर पढ़के सुनाया पड़ोस के अब्दुल्ला ने । सव झूठ है। सफेद मूठ है।”
हमने फिर उससे कहा कि “अखबार मे नही लिखेंगे ।” तब वह थोडा खिल-
खिलाई-- हम समभे कि इस कांछी के लिए ये दो छोरे आएं हैं। इसकी काफी मांग
है। नई-नई नेपाल से आयी। इसे कामाठीपुरा में बेच रहे ये । मैं उसे महा ले
आई। अब यहां आमदनी कम होती है। पर हम महफूज़ हैं। ये ही हफ्तेवाला
(सप्ताह के सप्ताह अपना कमीशन ले जावेवाला पुलिस का कारिंदा) ले जाता
है--चलो एक से हो तंग होगे ।”*
काछी कही बाहर गई थी। कामरेड शिग्रारे ने पूछा, “कितनी हो जाती है
कमाई।”
मुस्लिम अभिभाविका काफी चतुर थी। वह क्यो बताती सच-सच आकडा 1
अनदेखी / 25
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