छक्खंडागमो | Chhakkhandagamo

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Shatkhandagam Sparsh Karm Prakratianuyaogdwara Khand-5 Volume-1,2,3 Pustak-13 by पंडित हीरालाल जैन - Pandit Heeralal Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विषय-सूची विषय पृष्ठ सूक्ष्मक्रियाग्रतिपाती ध्यानका विचार ८३ केवलज्ञानके कालमें सयोगी जिनके होनेवाली क्रियाओंका निर्देश ८३ सूक्ष्मक्रियाप्रतिपातीको ध्यान संज्ञा देनेका कारण ८६ व्युपरतक्रियानिवर्तिध्यानका विचार ८७ इसे ध्यानसंज्ञ देनेका कारण का क्रियाकर्म विचार ८८ भावकभ विचार ९.० यहां समवदान कर्मका ग्रकरण है कर दस कमोमेंसे छह कर्मोकी अपेक्षा सत्त्‌ संख्या आदि आठ अधिकारोंका निरूपण ९१ सदजुयोद्ारनिरूपण ! द्रव्य प्रमाणानुगमनिरूपण ९३ छह कर्मौकी द्रब्याथता और प्रदेशाथताका स्पष्टीकरण 1) क्षेत्रनुगम निरूपण ९८ स्पशनानुगम निरूषण १०० काढानुगम निरूपण १०७ अन्तरानुगम निरूपण ११२ भावानुगम निरूपण १७२ अव्पत्रहुत्व निरूपण १७५ यहां कमके शेष अनुयोगद्वारोंका कथन न करनेका कारण १९६ ३ प्रकृति अनुयोगद्वार टीकाकारका मड्भल्मचरण १९७ प्रकृतिके १६ अधिकार रे प्रकृतिनिक्षेपके चार भेद १९८ कीन नय किस निक्षेपकों स्वीकार करता है, इस बातका निरूपण पर नैगम, व्यवहार और संग्रह नयकी अपेक्षा ऋजुसूत्र नयकी अपेक्षा १९६ शब्दनयकी अपेक्षा २०० नामप्रकृति विचार | [११ विषय पृष्ठ स्थापनाग्रकृति विचार २०! द्व्यप्रकृतिके दो भेद व स्वरूपनिर्देश २०३ आगमद्गब्यप्रकृतिके भथोधिकार की उपयोगके प्रकार | नोआगमह्व्यप्रकृतिके दो भेद २०४ नोकमैगप्रकृतिका विचार | कमग्रकृतिके आठ भेद २०५ शानावरणके ग्रसंगसे ज्ञानका खरूपनिर्देश व जीवके प्रथकू अस्तित्वकी सिद्धि २०६ दरीनका खरूपनिर्देश २०७ ज्ञनावणकी पाँच ग्रकृतियाँ २०९ पाँचों ज्ञानोंका स्वरूपनिर्देश श जीवके केबलजश्ानस्वभाव होनेपर भी पाँच ज्ञानोंकी उत्पत्तिका कारण सहित विवेचन २१३ आमिनिवोधिककज्ञानावरणके भेद २१६ अवग्रह आदिकी मुख्यतासे चार भेद. ॥ अवग्रहज्ञानका स्वरूपनिर्देश श ईहाज्ञानका स्वरूपनिर्देश २१७ स॑शयग्रत्ययका अन्तर्भाव के ईंहा अनुमानज्ञान नहीं है आदि विचार» अवायज्ञानका स्वरूपनिर्देश २१८ धारणाज्ञानका स्वरूपनिर्देश का अबमग्रह्मचरणीय कर्मके दो भेद २१९ अर्थावप्रह् और व्यज्ञनावग्रहका स्वरूप २२० ब्यज्ञनावग्रह कमके चार भेद १२१ शब्दके छह भेद व उनका स्वरूप पा भाषाके भेद और उनके स्वामी क अक्षरात्मक माषाके दो भेद और उनके बोल्नेवाले २२२ श्रोत्रेन्द्रियव्यञ्ञनावग्रहका स्वरूप शब्द-पुद्रछ लोकान्त तक कैसे फैल्ते हैं, श्सका विचार ञ हे




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