श्रीमदवावेदांत | Shrimadvavedant (purnapragyabhashya)

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Shrimadvavedant (purnapragyabhashya) by श्रीमन्मध्वाचार्य - Shrimanmadhvacharya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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| इति स्कानदे “परो दिवा पर एना पृथिव्या” इति समाख्या श्रुती ॥ “य कामये त तमुग्र कृणोमि त ब्रह्माण त ऋषि त सुमे- धाम्‌” इत्युक्वा “मम योनिरप्स्वतस्समुद्रे “इत्याह। उपस्रो रुद्र समुद्रेइत्तर्नारायण , प्रसिद्धत्वात्‌ सुचितत्वाच्चास्थाथंस्थ | न चावि- रोधे प्रसिद्ध परित्यज्यते । उक्तन्यायेन श्रुतय एतमेव वदन्ति । “बेदे रामायणे चेव पुराणे भारते तथा । आदावन्ते च मध्ये च विष्णुस्सवंनगीयत ॥ इति हरिवशेषु | न चेतरग्रन्थविरोध । प्रसिद्धां को छोडकर अन्य अथ नही करना चाहिए अजनाभि मे विष्णु का है ही उल्लेख हैं, स्कन्द पुराण मे उसका सुस्पष्ट उल्लेख है। 'जिसकी नामिम्कमछतरा >ज्रै/डीकसार श्रुतियाँ प्रकट हुईं ऐसे व्यष्टि सर्माष्ट विश्वविभूत्ति रूप छोककर्तता भगवान विष्णु को प्रणाम है ।” “परो दिवा पर एना पृथिव्या”, इत्यादि समाख्या श्रुति से भी उक्त वात पुष्ट होती है। इस श्रुति मे “य कामये त तमुप्र” इत्यादि कहू कर आगे “मम योनिरप्स्वत्तस्समृद्र” कहकर ' यमन्त समुद्रे कवयो वयन्ति” इत्यादि श्रुति को ही पुष्टि की गई है। उक्त श्रुति मे उग्र शब्द रुद्र का तथा समुद्रें अन्त शब्द नारायण का वाचक है। ये शब्द प्रसिद्धि और सूचक होने से उक्त अं का ही द्योतन करते है । जब तक कोई विरोध न हो, प्रसिद्ध अथं को छोडना भी नही चाहिये श्रुतियाँ विष्णु का ही उच्लेख करती हैँ । ' बेद, रामायण पुराण, महाभारत आदि सभी जगह आदि मध्य ओर अस्त में विष्णु वा ही 2 3 का न्य गुणानूरवीद किया गया है ।” ऐसा हरिवद्य पुराण का भी वचन है। दूसरे ग्रन्‍ भी इससे विरुद्ध कुछ नही कहते । “एप मोह सृजाम्याशु यो जनान्मोहयिष्यति । त्व च रुद्र महावाहों मोहशास्ताणि कोरय ॥ अतथ्यानि वितथ्यानि दर्शयस्व महाभुज 1 प्रकाश कुरु चात्मान अप्रकाश च मा कुरु 1 इति वाराहवचनातू । शेवे च स्कान्दे--- “इवपचादपि कष्टत्वम्‌ ब्रहोशानादय सुरा । तदेवाच्युत यान्त्येव यदेव त्व पराड्मुख ॥”




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