स्याद्वादमञ्जरी | Syadvadmanjari
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
20 MB
कुल पष्ठ :
526
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)जय
जैनदर्शनमें स्थाद्रादका स्थान मे
समन्वय हो सकता है, यह बताना चोहिये | नये विज्ञानबाद ( ४ 10001571 ) के प्रति-
पादक तैडलेके अनुसार श्रत्येक वस्तु दूसरी वस्तुओसे तुलना किये जानेपर आवश्यकीय और
अनावश्यकीय दोनो सिद्ध होती है। संघारमे कोई भी पदार्थ नगण्य अथवा अकिंचित्कर नहीं
कहा जा सकता । अतएव प्रत्येक तुच्छसे तुच्छ बिचारमें और छोटीसे छोटी सत्तामे सत्यता
विधमान है । आधुनिक दाशनिक जोअचिम ( ००४०४ ) का कहना है, कि कोई भी विचार
स्तः ही, दूसरे विचारसे सर्वथा अनपेक्षित होकर केवड अपनी दी अपेक्षासे सत्य नहीं कहा जा
सकता | उदाहरणके लिये, तीनेसे तीनकों गुणा करनेपर नौ होता है ( ३१८३-५९ ) यह
पिद्गधात एक बालकके लिये सर्वथा निप्रयोजन है, परन्तु इसे पढ़कर एक विज्ञानवेत्ताके सामने
गणितशाज्षके विज्ञानका सारा नक्शा सामने आ जाता है| मानसशात्षके विद्वान प्रो. वरिलियम
जेम्स ( ४. 77% ) ने भी लिखा है, हमारी अनेक दुनिया है। साधारण मनुष्य इन
सब दुनियाओका एक दूसरेते असम्बद्ध तथा अनपेक्षित रूपसे ज्ञान करता है । पूर्ण
तलवेता वही है, जो सम्पूण दुनियाओसे एक दूसरेसे सम्बद्ध और अपेक्षित रूपमें जानता
है । इसी प्रकारके विचार पेरी' (९८४७ ), नैयायिक जोसेफ (००४५१ ), एडमन्ड
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