स्याद्वादमञ्जरी | Syadvadmanjari

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1848 Sayadvadmanjari; (1935) by महाकवि मल्लिषेण - Mahakavi Mallishan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जय जैनदर्शनमें स्थाद्रादका स्थान मे समन्वय हो सकता है, यह बताना चोहिये | नये विज्ञानबाद ( ४ 10001571 ) के प्रति- पादक तैडलेके अनुसार श्रत्येक वस्तु दूसरी वस्तुओसे तुलना किये जानेपर आवश्यकीय और अनावश्यकीय दोनो सिद्ध होती है। संघारमे कोई भी पदार्थ नगण्य अथवा अकिंचित्कर नहीं कहा जा सकता । अतएव प्रत्येक तुच्छसे तुच्छ बिचारमें और छोटीसे छोटी सत्तामे सत्यता विधमान है । आधुनिक दाशनिक जोअचिम ( ००४०४ ) का कहना है, कि कोई भी विचार स्तः ही, दूसरे विचारसे सर्वथा अनपेक्षित होकर केवड अपनी दी अपेक्षासे सत्य नहीं कहा जा सकता | उदाहरणके लिये, तीनेसे तीनकों गुणा करनेपर नौ होता है ( ३१८३-५९ ) यह पिद्गधात एक बालकके लिये सर्वथा निप्रयोजन है, परन्तु इसे पढ़कर एक विज्ञानवेत्ताके सामने गणितशाज्षके विज्ञानका सारा नक्शा सामने आ जाता है| मानसशात्षके विद्वान प्रो. वरिलियम जेम्स ( ४. 77% ) ने भी लिखा है, हमारी अनेक दुनिया है। साधारण मनुष्य इन सब दुनियाओका एक दूसरेते असम्बद्ध तथा अनपेक्षित रूपसे ज्ञान करता है । पूर्ण तलवेता वही है, जो सम्पूण दुनियाओसे एक दूसरेसे सम्बद्ध और अपेक्षित रूपमें जानता है । इसी प्रकारके विचार पेरी' (९८४७ ), नैयायिक जोसेफ (००४५१ ), एडमन्ड ४ १ ए९शाए 18 ए०ए 0४8, 7007 शिक्ष॑, ४ फिं3 88088 9 18 ईणी एत ॥०8७- परण8, ००रध्रक्षोलकांएड, बाते 0ए0ए०आंग्रए7४ 19 छाई इथ्णायाकाक,. 20005: अ्रंगिशर, शाते 005; 7रशा 1 ए०772, एरशए/8, धयतें 00, 70 60 & थांगए 175708, ए6 प्राए& थी 09 109 धण 0पा 1 ए1000॥19 थी ६1089 0णाए90/ल्‍वा0ाह # धाते 2100 00एए सिह 88 786ण९०:8ते शाते छाक्शरली गा कि9 धागिणाशंश्ते फत06 फ्रांधा 6 था! 06 प्र ण॑ 09 फांगह- प्रणाए * म्राऋतणए 0 2?प1050ए79 पृ. ४६७1 २ शरएशजफ्राड ए 8३8शाएशे शाप ७ प्रणांधो€9 व 0014० 71901 गत णीश',. ऊैएए जवाश8 78 ग्रिष्ा३ 6५01 9 हांगडों8 48० 80 18070शाविए धापे 80 9007 गि्य ६0 018 प्रएंएढ86 16 0088 70 शर्शाशा,.. छा ३४ धएति 0 ९एशए 3108 #एएछएकः 12४8७, थी 18 पश्थातए या 8एशए छचांडंशा०8 1079एशः भोश।- 4फाएश्श्ध्ा९8 भात पिशवपए पू ४८७1 ३ 1४० ण्वेंद्रणाथा। 18 पाप ता गंइशि शा एए वॉच्श,. फएशए 1प087076 88 2 ए808 0९ ९01608४89 सींगियाएु 18 रई0याहते, 00000०९ ६0. 8७16 - 0तंशा, 0णा5गए80 7ए 688 धएश०थंए्ॉशाई काश 2लंशः 06 (४6 गाँएऐं, रिश्लाग8 त प्रशांत व, हे ९. ५२-३ | ४ 15% एकलंफ्ाक ०6 79एजाण० १७ ०. 1 भ. २० ५, २९१ । ५ 2880 -7िर1050ए7ंगों फछातेशालंध,.. 0100एथ! ण सवा. ६ पराध्र०वएढांगा 10 11086... पृ, १७०२-३१




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