अथ वेदांगप्रकाश भाग - 3 | Ath Vedangaprakash Bhag - 3
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
284
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अकारान्तः १५
३२-हस्वनद्यापो लुद || आ० ७।३॥ ५४ ॥
हस्व, खर , नदीसंज्ञक इकारान्त, ऊकारान्त और अआकारान्त से
परे आम् को नुद् का आगम हो (१)। दिस्त धर्म से आम के आदि में
जुट हुआ | गैसे-/पुरुष-नुट-आम्' इस अवस्था में (२) उकार और
टकार की इत्संज्ञा और लोप द्वोकर--9रुप--च्--आम्? नकार में
आकार मिल के--पुरुषनाम् ।
३३-नामि ॥ झ० ६1४७। ३१॥
साम् अथात् जो पष्ठी का बहुबचन लुटू सहित आम परे हो तो
अजनन्त अंग को दीधोदेश हो । जैसे-पुरुपानाम । यहां नकार को (३)
व्युकार छोफे--पुरुषणपम् ॥ सप्तमी का एकबचन-पुरुप--डि1 (४)
डः फी इस्संज्ञा और लोप होकर अकार और इकार के स्थान में गुण
“सकादेश एकार हुआ --पुरुषे | द्विवचन--पुरुप--ओस । पू्वेवत्
'एकार (५) अय् और स् की रुत्व, विसजनीय हो के--प्रुरुषयों: ।
प्तमी का बहुवचन--पुरुष--सुप्। अन्त्य हल् पकार की इ्सज्ञा
और पूवेबत् एकार होकर--“पुरुपेस” इस अवस्था में--
४-आभादेश्वप्रत्यययो; ॥ अ० ८। ४। ५६ ॥
इश्णप्रत्याहार और कवगे स पर आदेश ओर पत्यय के सकार
को मूधेन्य अथोत्् पकार आदेश दो | जैसे--पुर्षेषु
३५-सम्बोधने च ॥ झ० २| ३। ४७ ॥
(१) (टिव् आदि में) भाचन्ती टकितो | सन्धि० ८० इससे हुणा +
(२) ( उकारेत्संज्ञा ) उपदेशेडजनुनासिक इत् । [ ना० ३१]
टकारेत्सज्ञा ) हब्य्न्थ्यम् । सन्धि० १६ 1
(३) ( णकार ) अट्कुप्वाड्नुमुब्यवायेडपि [ ना० २७ ]।
(५) ( छू की इत्सजा ) छशक्कतद्धित [ भान २१ ] 1
(५) € अय् 9 एचोइयवायाव: | सन्धि० १८० ॥
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