अथ वेदांगप्रकाश भाग - 3 | Ath Vedangaprakash Bhag - 3

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Ath Vedangaprakash Bhag - 3 by स्वामी दयानन्द सरस्वती - Swami Dayananda Saraswati

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अकारान्तः १५ ३२-हस्वनद्यापो लुद || आ० ७।३॥ ५४ ॥ हस्व, खर , नदीसंज्ञक इकारान्त, ऊकारान्त और अआकारान्त से परे आम्‌ को नुद्‌ का आगम हो (१)। दिस्त धर्म से आम के आदि में जुट हुआ | गैसे-/पुरुष-नुट-आम्‌' इस अवस्था में (२) उकार और टकार की इत्संज्ञा और लोप द्वोकर--9रुप--च्‌--आम्‌? नकार में आकार मिल के--पुरुषनाम्‌ । ३३-नामि ॥ झ० ६1४७। ३१॥ साम्‌ अथात्‌ जो पष्ठी का बहुबचन लुटू सहित आम परे हो तो अजनन्‍त अंग को दीधोदेश हो । जैसे-पुरुपानाम । यहां नकार को (३) व्युकार छोफे--पुरुषणपम्‌ ॥ सप्तमी का एकबचन-पुरुप--डि1 (४) डः फी इस्संज्ञा और लोप होकर अकार और इकार के स्थान में गुण “सकादेश एकार हुआ --पुरुषे | द्विवचन--पुरुप--ओस । पू्वेवत्‌ 'एकार (५) अय्‌ और स्‌ की रुत्व, विसजनीय हो के--प्रुरुषयों: । प्तमी का बहुवचन--पुरुष--सुप्‌। अन्त्य हल्‌ पकार की इ्सज्ञा और पूवेबत्‌ एकार होकर--“पुरुपेस” इस अवस्था में-- ४-आभादेश्वप्रत्यययो; ॥ अ० ८। ४। ५६ ॥ इश्णप्रत्याहार और कवगे स पर आदेश ओर पत्यय के सकार को मूधेन्य अथोत््‌ पकार आदेश दो | जैसे--पुर्षेषु ३५-सम्बोधने च ॥ झ० २| ३। ४७ ॥ (१) (टिव्‌ आदि में) भाचन्ती टकितो | सन्धि० ८० इससे हुणा + (२) ( उकारेत्संज्ञा ) उपदेशेडजनुनासिक इत्‌ । [ ना० ३१] टकारेत्सज्ञा ) हब्य्न्थ्यम्‌ । सन्धि० १६ 1 (३) ( णकार ) अट्कुप्वाड्नुमुब्यवायेडपि [ ना० २७ ]। (५) ( छू की इत्सजा ) छशक्कतद्धित [ भान २१ ] 1 (५) € अय्‌ 9 एचोइयवायाव: | सन्धि० १८० ॥




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