भारतीय कला को बिहार की देन | Bharatiy Kala Ko Bihar Ki Den
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
288
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पहला अध्याय ड़
ओर आध्यात्मिक छवि को चित्रित कर कला उस समान और सभ्यता को प्रतिविम्बित ही
नहीं करती, वरन अमरता प्रदान करती है ।”?
भारतीय कला घाम्मिक सत्य और नेतिऊ आदर्शों का वाहन रही दै और साम्राजिक
जीवन के विभिन्न अगों को उत्तेजित करती रही है। इस प्रकार यह सार्वजनिक तथा
सामाजिक आन्दोलनों वी प्रसारिका कही जा सकती है। भिन्न भिन्न थु्गों और जातियों
की सस्क्ृतियों के रूप रंग और मानवन्सभ्यता की भ्रगति के ज्ञान के लिए प्रतिमाओं के मूल
आदर्श और लाक्णिक सक्रेत को समकना जहरी है । “रॉय” रा कहना है कि कला दिसी
भी जाति के राजनीतिक, धार्मिक और सामाजिक जीवन से घनिष्ठ सम्बंध रखती है ।
कल्ला और धर्म साथ-साथ विकसित द्वोते हैं। प्रसिद्ध विद्वान अ्रनैसारी ( 5७४७० )
वा भी कद्दना है सि धम और कला मानव जीवन के प्रबल अग रहे हैं। कला पूजार्थ
प्रतिमाओं का सजन करती है और एसी प्रतिमाओं म॑ देवता सिफ़ रहस्थमयी शक्तियों का दी
नहीं, बल्कि मानव की शत्मा की भद्दत्त्वाकाज्ञा और पीड़ा का भी प्रतिनिधित्व करता हे !
कला की श्रेष्ठता के लिए यह जरूरी दे कि उसे देख कर दर्शकों के हृदय और
मस्तिष्क पर एक विशेष प्रकार वी छाप पढ़े। यदि प्रत्ये दर्शक किसी कलात्मक इृति
से मिन भिन्न प्रकार से प्रभावित होता है तो उसका कोई अय ही नहीं रहतता। यद्यपि
कलात्मक हृति कल्लाकार छी वेयक्तिक प्रतिभा का परिणाम है, तथापि उसे “ब्षा? प्री
भ्ेणी में रखने के निमित्त समात्र के द्वारा मान्यता मिलनी जरूरी है। इसीलिए, कला
और समाज का अन्योन्याभ्रय सम्बन्ध है। कसी भी सम्यता वा स्थायी महत्त्व उसकी
भौतिऊ समृद्धि पर नहाँ, वरन् नतिर और आध्यात्मिक देन पर है। कला ओर साहित्य के
माध्यम से ही दसरी यथार्थ सराहना वी जा सकती है। डॉ० राधाइष्णन् के विचार में--
“साहित्य और कला राष्ट्रीय चतना के अत्युत्तम प्रतीक हैं और उनकी सयसे प्रयल शक्तियों
तथा अत्यधिक सुकुमार भावनाएँ तो और भी उत्तम प्रतीऊ हैं। राष्ट्र की कला जन जीवन
पे उत्साह पाती है और अपनी ओर से उसे प्राणवन्त या उत्तेतित करती है ।””* इस प्रकार
कला और जीवन का ध्त्यन्त घनिष्ठ सम्बन्ध है ।
कला सामानिक वस्तु है। कला के विभिन्न रूप सामाजिक परिस्थितियों से निश्चित
किये भये हैं। इस प्रकार कलात्मक कृतियों म॑ सामाजिक मनुष्य के अनुभव और
पल्लायनवादी भ्रत्नत्तिया--दोनों की अमभिव्णक्कि द्ोती है । राजनीतिक स्थिति भी कला के रूप
को प्रभावित करती है | गुप्त और पाल-शल की पूर्ण प्रस्फुटित कला के सतुलन तथा शाति
के गुण तत्कालीन ऐश्व्यपूरों एवं सन्तोषप्रद्धक वातावरण मे ही विस्सित हुए। कला
कल्लाकार की कृति है। कलाकार तो स्वय ही उन तत्काल्लीन सामाजिक सस्थाओं और
च्याप्त भावों में जन्मा तथा पला है, जिन्होंने उसकी आतरिक शक्तियों को सिखाया पढाया
है तथा जीवन के प्रति उसके दृष्टितोण को निश्चित रूप दिया है। कलाकार अपने भावों
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