नवाष्टकमालिका | Nawashtakmaalik
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
48
श्रेणी :
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No Information available about मिश्रो भिरा राजेन्द्र - Mishro Bhira Rajendra
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रास्ताविक
“नवाष्टक्मालिका” प्रकाशित होने वाली मेरी चौथी स्वतन्त्र मौलिक
संस्कृत-रचना है। मूलत यह मदुपज्ञ देवस्तुतियों एवं आत्मनिवेदनों का एक
संकलन मात्र है।
साहित्य- पंणकार आचाय॑ विश्वताथ ने महाकाव्य के एकदेश का अनुसरण
करने वाली काव्यक्रति को 'खण्डकाव्य' कहा था । परवर्ती समालोचको ने
खण्डकाव्य को भी अवान्तर भेदों मे विभक्त किया । एक दृष्टि से खण्डकाव्य
'मुक्तक एवं प्र न्ध” के रूप मे कल्पित किये गये । महाकवि भल्लठ कृत शतक को
मुक्तक का तथा कविकुलगुरु कालिदास प्रणीत मेघदूत को प्रबन्ध का निदर्शन स्वीकार
किया जा सकता है| एक अन्य दृष्टि से खण्डकाव्यो को लौकिक तथा धामिक---
शीषंको में व्यवस्थित किया गया । लोक-सम्बद्ध विषयो के प्रतिपादक खण्डकाव्य
धम श्रेणी में तथा सम्पूर्ण स्तोत्र-साहित्य द्वितीय श्रेणी में गिना जा सकता है।
स्तोग्नो की गणना धर्मपरक, मुक्तक खण्डकाव्य में की जाती है। स्तुति,
स्तवन, स्तीत्र --ये शब्द परस्पर पर्याय हैं। इसी प्रकार ऋक्, ऋचा, भर्चा,
अचेना एवं वन्दनादि शब्द भी स्तोत्र के ही अभिप्राय को व्यक्त करते है ।
आचार्यों द्वारा ऋक्' शब्द की व्युत्पन्षि बताई गई है---जिसके द्वारा अचना
अथवा स्तृवन्. किया जाय ( अच्यंते स्तृयतेइनयेति ऋक ) विश्ववाड मय का
प्राचीनतम ग्रन्थ ऋषेद ऐसी ही देवस्तुतियों का एक अभिनन्दनीय भाण्डा-
गार है।
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