नवाष्टकमालिका | Nawashtakmaalik

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Nawashtakmaalik  by मिश्रो भिरा राजेन्द्र - Mishro Bhira Rajendra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रास्ताविक “नवाष्टक्मालिका” प्रकाशित होने वाली मेरी चौथी स्वतन्त्र मौलिक संस्कृत-रचना है। मूलत यह मदुपज्ञ देवस्तुतियों एवं आत्मनिवेदनों का एक संकलन मात्र है। साहित्य- पंणकार आचाय॑ विश्वताथ ने महाकाव्य के एकदेश का अनुसरण करने वाली काव्यक्रति को 'खण्डकाव्य' कहा था । परवर्ती समालोचको ने खण्डकाव्य को भी अवान्तर भेदों मे विभक्त किया । एक दृष्टि से खण्डकाव्य 'मुक्तक एवं प्र न्ध” के रूप मे कल्पित किये गये । महाकवि भल्लठ कृत शतक को मुक्तक का तथा कविकुलगुरु कालिदास प्रणीत मेघदूत को प्रबन्ध का निदर्शन स्वीकार किया जा सकता है| एक अन्य दृष्टि से खण्डकाव्यो को लौकिक तथा धामिक--- शीषंको में व्यवस्थित किया गया । लोक-सम्बद्ध विषयो के प्रतिपादक खण्डकाव्य धम श्रेणी में तथा सम्पूर्ण स्तोत्र-साहित्य द्वितीय श्रेणी में गिना जा सकता है। स्तोग्नो की गणना धर्मपरक, मुक्तक खण्डकाव्य में की जाती है। स्तुति, स्तवन, स्तीत्र --ये शब्द परस्पर पर्याय हैं। इसी प्रकार ऋक्‌, ऋचा, भर्चा, अचेना एवं वन्दनादि शब्द भी स्तोत्र के ही अभिप्राय को व्यक्त करते है । आचार्यों द्वारा ऋक्‌' शब्द की व्युत्पन्षि बताई गई है---जिसके द्वारा अचना अथवा स्तृवन्‌. किया जाय ( अच्यंते स्तृयतेइनयेति ऋक ) विश्ववाड मय का प्राचीनतम ग्रन्थ ऋषेद ऐसी ही देवस्तुतियों का एक अभिनन्दनीय भाण्डा- गार है।




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