भोजप्रबन्ध | Bhoj Praband

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Bhoj Praband by श्यामसुन्दर - Shyamsundar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बन [ पृ1 ८] जू॥ रह | छू प६७ ६३ । 3. 5. का अनन्तर वत्सराज समयानुसार कार्य करना चाहिये यह विचारके चुप 'होगये | जब सूर्य छिपने छगा तो ऊँचे महरूसे उतरतेहुए क्रोधित यमराजकी -समान वत्सराजकों देखकर समी समासद भयभीत हो अनेक बहानेंसे अपने २ घरोंकों जाने रंगे | फिर वत्सराजने अपने घर्का रक्षाके लिये 'नीकरोंकों भेज भुवनेश्वरी देवीके मन्दिरके सामने रथकों खड़ा कर भोजकों _“ढानेवाले पण्डितको बुढानेके निमित्त दूत भेजा । दूतने जाकर पंडितसे कहा, हे महाराज | आपको वत्सराज बुढाते हैं | इस बातकों सुन वज्ञसे _ हतहुएकी समान, भूतचढेकी समान और ग्रहोंसे प्रते हुएकी समान उस दूतके द्वारा हाथ पकड़े हुए पंडित आया । उस पंडितकों प्रणाम करके बुद्धिमान्‌ वत्सराजने कहा, है पंडितनी महाराज | विराजिये राजकुमार जय॑ंतको पाठशालासे बुकाइये । राजकुमार जय॑तके आनेपर कुछ पढ़े हुए... पाठकों पूँठकर वापिस मेज दिया | फिर पंडितसे कहा, महाराज | अब . भौजको बुराइये तब सब समाचारको जाननेबाछा भोज क्रोषसे जछूते हुए... छाढ नेत्र किये आकर बोला । है पापी | राजाके मुख्य कुमारकों अकेके -शजभवनते बाहर छे जानेकी तुझमें क्या सामथ्य है ? ऐसा कह बायें चेरणकी खडाऊंको निकाछ भोजने वत्सराजके शिर्में मारी । तब वत्सराजने . कहा, हे भोज ! में राजाका आज्ञाकारी हूँ, यह कद बाछक ( भोज ) को. - -शथमें बिठाल खड़को म्पानसे निकालकर देवीके मंदिरपर पहुंचा | तब मोज -धकडागया ऐसा कहते हुए छोग कोछाहछ मचाने ढगे, हूँ क्या है ! क्या है ![ क्या हुआ !!! इस मॉँतिसे ऊँचे शब्दद्वारा पुकारते हुए शूरवीर योघा शीघ्र आये । भोजका मारनेके लिये पकडा है यह जानऋर हस्तिशाला, उ्टशाल और अश्वशारामें घुसकर सबको मारने छगे । फिर गलियोंमें, राजमहरूको खाई, किलेके पास, शहरके दरवाजोंके सम्मुख, नगरके निकट भेरी ढोल, मृदंग, डमेरू, मड़डू और तम्बूरे आदिके शब्दसे आकाश गूंज गया । तब कुछ मनुष्य तीक्ष्ण तल्वार्से, विषसे, मालेसे, फॉसीसे आगमें जलकर, फरसेसे, बरछीसे, तोमरसे, खँँडेसे, जरूमें ह्बकर और -घुथ्वीपर -गिरकरही ब्राह्मण, खत्री, राजपूत, राजसेवक आदि बगरवारसी जन अपने २ प्राणोंकों खोने छगे | फिर सावित्री नामबाली भोजकी माता




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